नयी दिल्ली : लोकसभा चुनाव के छठे चरण के करीब पहुंचने के बीच एक नयी अध्ययन रिपोर्ट जारी की गयी है. इसमें कहा गया है कि पिछले पांच सालों में देश में हुए विभिन्न चुनावों में डेढ़ लाख करोड़ रुपये से अधिक धन खर्च किया गया. इसमें से आधे से अधिक धन (75,000 करोड़ रुपये से ज्यादा) ‘बेहिसाब स्नेतों’ से आया था. सेंटर फॉर मीडिया (सीएमएस) द्वारा कराया गया यह...
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कहां खो जाते हैं महिलाओं के मुद्दे - रंजना कुमारी
मैं दिल्ली से उत्तर प्रदेश के अपने एक गांव में वोट डालने गई थी। वहां अब भी बहुत ज्यादा विकास नहीं हुआ है। मगर एक अच्छी बात जरूर दिखी कि घरों से महिलाएं वोट डालने के लिए अकेली निकल रही थीं। पहले ज्यादातर वे परिवार की भीड़ का हिस्सा बनकर पोलिंग बूथों तक पहुंचती थीं, लेकिन इस बार वे अपने बच्चे का हाथ थामकर मतदान की कतारों में खड़ी थीं।...
More »समाजवाद की संभावना थे सुनील- अरुण कुमार त्रिपाठी
सुनील भाई से जब भी मिला, जहां भी मिला उन्हें एक जैसा ही पाया. वे रंग बदलनेवाले और रंग दिखानेवाले समाजवादी नहीं थे. उन्हें देख कर और याद कर मुक्तिबोध की बौद्धिकों पर व्यंग्य में की कही गयी कविता की पंक्तियां पलट कर कहने का मन करता है. मुक्तिबोध ने आज के बुद्धिजीवियों के लिए कहा था- ‘उदरंभरि अनात्म बन गये, भूतों की शादी में कनात से तन गये, लिया बहुत...
More »'कोख का किराया' मिलेंगे कम से कम सवा दो लाख
नई दिल्ली। सरकारी स्तर पर सरोगेट मदर्स के स्वास्थ्य को लेकर दिशा-निर्देश तो हैं, लेकिन उनके आर्थिक हितों को लेकर कोई नियम नहीं हैं। ऐसे में इनफर्टिलिटी विशेषज्ञ डॉक्टर व वकीलों के एक संगठन ने पहल की है। उन्होंने तय किया कि सरोगेट मदर्स को किसी भी हाल में सवा दो लाख रुपये से कम नहीं मिलेंगे। डॉक्टरों व वकीलों के संगठन इंस्टर (इंडियन सोसाइटी फॉर थर्ड पार्टी असिस्टेड रिप्रोडक्शन) ने...
More »औरत के हक में नहीं- तस्लीमा नसरीन
लोकतंत्र बहुत ही सभ्य व्यवस्था है। लेकिन इस तंत्र में असभ्य और मूर्खों का भी ऐसा अबाध प्रवेश है कि कई बार लगता है, लोकतंत्र की स्थापना पर ही हमें रुक नहीं जाना चाहिए, बल्कि उसे और बेहतर करने के बारे में भी सोचना चाहिए। बचपन में मैंने दुर्गम गांवों के कुछ मतदाताओं को नाव चिह्न पर वोट देने जाते देखा था। वे सोचते थे कि नाव चिह्न पर वोट...
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