देश में बच्चा चोरी के नाम पर मॉब लिंचिंग यानी उन्मादी भीड़ द्वारा निर्दोषों की हत्याएं लगातार बढ़ रही हैं। पिछले करीब डेढ़ महीने में त्रिपुरा, असम, आंध्र प्रदेश, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, तेलंगाना और कर्नाटक में ऐसी 20 हत्याएं हो चुकी हैं। सिर्फ हत्यारी भीड़ को ही नहीं, बल्कि इलाके के आम लोगों को शक था कि बच्चा चोर किडनियां बेचने, वेश्यावृत्ति कराने और शहरों में भीख मंगवाने के लिए...
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न्याय की वेदी पर खंड-खंड पाखंड - भवदीप कांग
अपने आश्रम में एक नाबालिग से दुष्कर्म के मामले में आसाराम को जोधपुर कोर्ट ने उम्रकैद की सजा सुना दी है। यह वही आसाराम है, जिसका कभी बड़ा रसूख हुआ करता था। अपने इसी रसूख के दम पर उसने एक बार यहां तक कि गुजरात की तत्कालीन मोदी सरकार को गिराने की धमकी भी दे डाली थी। यूं देखा जाए तो राजनीतिक प्रश्रय की वजह से ही कथावाचक आसाराम के...
More »बाधित संसद लोकतंत्र की अवमानना-- राजकुमार सिंह
संसदीय लोकतंत्र में संसद ही सर्वोच्च है। हमारे माननीय संसद सदस्य इस सर्वोच्चता का अहसास कराने का कोई मौका भी नहीं चूकते, पर खुद इस सर्वोच्चता से जुड़ी जिम्मेदारी-जवाबदेही का अहसास करने को तैयार नहीं। संसद में धनबलियों और बाहुबलियों की बढ़ती संख्या और लोकतंत्र की मूल भावना को इससे बढ़ते खतरे की चर्चा और चिंता मीडिया से लेकर सर्वोच्च अदालत तक मुखर होती रही है। जाहिर है, इस गहराते...
More »आशंकाओं के निराधार तर्क-- नंदन नीलेकणि
यह संभव नहीं कि चित और पट, दोनों आपकी ही हो। अर्थशास्त्री इसे ‘समझौता' कहते हैं। आप हर वक्त दो विरोधी मतों के बीच संतुलन बिठाते हैं। मसलन, 18वीं सदी के अंत तक या तो आप चार पहियों वाली घोड़ागाड़ी की सवारी कर सकते थे, जो धीरे-धीरे, लेकिन आपको एक सुविधाजनक यात्रा कराती, या फिर घोड़े की पीठ की सवारी करते थे, जिसमें आप मंजिल तक तेज तो पहुंच जाते,...
More »आधार के प्रयोग को रोकना उचित नहीं-- हरिवंश
यह बौद्धिक विमर्श और संवाद अपनी जगह है, पर बिचौलियों और भ्रष्टाचार को खत्म करना आज समाज की निगाह में व्यवस्था का सबसे प्रासंगिक और जरूरी मसला नहीं है? हाल ही में एक डच दार्शनिक विचारक व इतिहासकार रटजर बर्जमैन की महत्वपूर्ण किताब आयी है, ‘यूटोपिया फॉर रिअलिस्ट्स' (ब्लूम्सबेरी). यह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बेस्टसेलर मानी गयी है. इस पुस्तक का मर्म है कि हम एक अप्रत्याशित उथल-पुथल के दौर में...
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