सुप्रीम कोर्ट ने कभी केंद्रीय जांच ब्यूरो, यानी सीबीआई पर तंज कसा था कि यह पिंजरे में बंद तोता है। क्या पता था कि कोर्ट द्वारा विभूषित इस ‘पिंजरे' में आपसी टकराहटों की आवाजें इतनी मुखर हो जाएंगी कि तमाशे के प्रमुख किरदार खुद तमाशा बन जाएंगे। देश की इस सर्वोच्च जांच एजेंसी के शीर्षस्थ दो अधिकारियों में लड़ाई के बाद का घटनाक्रम खासा दुर्भाग्यपूर्ण है। यह पहला मौका है, जब...
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धन के पर्व पर निवेश की बात- आलोक पुराणिक
सेंसेक्स, यानी मुंबई शेयर बाजार का संवेदनशील सूचकांक, जिसमें देश की शीर्ष तीस कंपनियों के शेयरों के भावों का अंदाज मिलता है। अगर किसी ने करीब एक साल पहले के मुंबई शेयर बाजार के सूचकांक में पैसे लगाए हों, तो वह करीब तीन प्रतिशत के रिटर्न पर बैठा है। यह रिटर्न बहुत ही खराब माना जाएगा। हाल के कुछ महीने शेयर बाजार के लिए बहुत खराब बीते हैं, क्योंकि...
More »सबसे ज्यादा अश्लील है भ्रष्टाचार-- मोहन गुरुस्वामी
भ्रष्टाचार भारत में बातचीत का एक पसंदीदा विषय है. इस पर चर्चा करना हम पसंद करते हैं और इसकी सभी विकृतियों का रोना रोते हैं. हमें इसमें महारत हासिल है और हम सभी ने किसी न किसी रूप में इसे अनुभव किया है. यह किसी एक सहज परिभाषा को नकारता है, लेकिन यह है क्या, हम सभी समझते हैं. अश्लीलता के संदर्भ में अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस पॉटर स्टिवर्ट...
More »आक्रोश जरूरी है पर भीड़ की हिंसा शर्मनाक- कैलाश सत्यार्थी
देश में बच्चा चोरी के नाम पर मॉब लिंचिंग यानी उन्मादी भीड़ द्वारा निर्दोषों की हत्याएं लगातार बढ़ रही हैं। पिछले करीब डेढ़ महीने में त्रिपुरा, असम, आंध्र प्रदेश, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, तेलंगाना और कर्नाटक में ऐसी 20 हत्याएं हो चुकी हैं। सिर्फ हत्यारी भीड़ को ही नहीं, बल्कि इलाके के आम लोगों को शक था कि बच्चा चोर किडनियां बेचने, वेश्यावृत्ति कराने और शहरों में भीख मंगवाने के लिए...
More »अंतहीन अत्याचार का वह काला दौर - ए. सूर्यप्रकाश
जून का महीना झुलसाती गर्मी के साथ इतिहास की कुछ दर्दनाक यादों को भी दोहराता है। 1975 में 25 जून को प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश पर निरंकुश आपातकाल थोपा था। इसके साथ ही जीवंत लोकतंत्र पर तानाशाही हावी हो गई थी। इस तानाशाही ने न केवल नागरिकों के मूल अधिकार निलंबित किए, बल्कि उन्हें जीवन के अधिकार से भी वंचित किया। यदि हम अपने लोकतांत्रिक जीवन को सुरक्षित रखना...
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