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राजनीतिक दलों की बढ़ती वित्तीय आय में अपारदर्शी चुनावी चंदा

साल 2019 बीतते-बीतते प्रमुख राजनीतिक दलों की वित्तीय आय और इलेक्टोरल बॉन्ड यानि चुनाव में चंदे की नई व्यवस्था से जुड़ी कई खबरें और चर्चाएं सुनने को मिलीं. लोकतंत्र की बेहतरी के लिए काम करने वाली कई संस्थाओं ने और पत्रकारों ने आरटीआइ कार्यकर्ताओं के साथ मिलकर चुनावी चंदा लेने के इलेक्टोरल बॉन्ड जैसे अपारदर्शी तंत्र पर सवालिया निशान खड़े किए. इलेक्टोरल बॉन्ड की बिक्री पर रोक लगाने की मांग...

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एनएसएसओ रिपोर्ट पर किरकिरी के बाद सरकार मुद्रा योजना से मिले रोज़गार के आंकड़ों को पेश करेगी

नई दिल्लीः केंद्र में भाजपा की अगुवाई वाली एनडीए सरकार ने बेरोजगारी पर राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय (एनएसएसओ) की रिपोर्ट से किनारा करने की योजना बनाई है और इसकी जगह पर माइक्रो यूनिट्स डेवलपमेंट एंड रिफाइनेंस एजेंसी (मुद्रा) योजना के तहत सृजित रोजगारों पर श्रम ब्यूरो के सर्वेक्षण के निष्कर्षों का इस्तेमाल करने की बात कही है. इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, नीति आयोग ने गुरुवार को श्रम मंत्रालय से सर्वेक्षण की...

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बजट में हो ‘भारत’ पर नजर- निशिकांत दुबे

वर्ष 2019-20 का केंद्रीय बजट एक ऐसे वक्त में पेश होने जा रहा है, जब पूरा विश्व जटिल आर्थिक परिस्थितियों का शिकार है. विश्व की बड़ी औद्योगिक अर्थव्यवस्थाओं में अपस्फीति (डीफ्लेशन) की प्रवृत्ति एक ऐसा जोखिम बनकर उभरी है, जिसके प्रभाव से आगामी कई वर्षों के लिए वैश्विक विकास के अवरुद्ध हो जाने का खतरा मंडरा रहा है. वैसे, यह एक दूसरी बात है कि कच्चे तेल तथा अधिकांश जिंसों...

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‘मुद्रा’ के बढ़ते एनपीए पर आरबीआइ ने किया सावधान

नयी दिल्ली : आरबीआइ ने केंद्र की महत्वाकांक्षी मुद्रा लोन योजना में बढ़ते एनपीए (डूबा कर्ज) को लेकर सरकार को चेताया है. वित्त मंत्रालय के सूत्रों ने यह जानकारी दी. -11,000 करोड़ रुपये का बैड लोन (एनपीए) हो गया है प्रधानमंत्री मुद्रा योजना के तहत -2.46 लाख करोड़ रुपये का मुद्रा लोन बांटा जा चुका है वर्ष 2018 तक -4.81 करोड़ छोटे स्तर पर बिजनेस करनेवाले लोगों ने यह कर्ज लिया मुद्रा...

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वैश्विक मंदी के संकेत देता अमेरिका- अजीत रानाडे

वर्ष 2018 का आगाज आर्थिक वृद्धि के लिए एक बड़े आशावाद के साथ हुआ. साल 2017 के समापन ने भी साल की वास्तविक वृद्धि को अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के पूर्वानुमानों से आगे पहुंचा दिया था, जबकि इसके पहले के छह वर्षों के दौरान प्रत्येक वर्ष की शुरुआत में उसके द्वारा घोषित वार्षिक पूर्वानुमानों को लगातार नीचे लाने की जरूरत पड़ती रही, क्योंकि वास्तविक वृद्धि उन पर कभी खरी नहीं उतर...

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