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किसान पर पड़ती जलवायु की मार: भारत में 45 फीसदी तक घट जाएगा डेयरी और मीट उत्पादन

-डाउन टू अर्थ, बदलती जलवायु जहां एक ओर कृषि और खाद्य सुरक्षा के लिए बड़ा खतरा बन गई है। वहीं दूसरी तरफ यह पशुपालकों और उनके पशुधन पर भी व्यापक प्रभाव डाल सकती है। इस बारे में वैज्ञानिकों का अनुमान है कि जिस तरह से तापमान में वृद्धि हो रही है, उसके चलते सदी के अंत तक भारत में डेयरी उत्पादन 45 फीसदी तक घट जाएगा। वहीं अमेरिका के डेयरी और...

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सुपर फूड बनते मोटे अनाजों को थाली और खेत में वापस लाने की जरूरत

-गांव कनेक्शन, भारत दुनिया का सबसे बड़ा मिलेट (मोटे अनाज) उत्पादक देश है। राजस्थान, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, हरियाणा, गुजरात, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, झारखण्ड, तमिलनाडु, और तेलगांना आदि प्रमुख मोटे अनाज उत्पादक राज्य हैं। जबकि आसाम और बिहार में सबसे ज्यादा मोटे अनाजों की खपत होती है। देश में पैदा की जाने वाली मुख्य मिलेट फसलों में ज्वार, बाजरा और रागी का स्थान आता है। छोटी मिलेट फसलों में...

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जलवायु परिवर्तन की वजह से भारतीय बच्चों में बढ़ रहा है संक्रामक रोगों का खतरा

-डाउन टू अर्थ, जलवायु परिवर्तन के चलते भारतीय बच्चों के संक्रामक रोगों की चपेट में आने का खतरा बढ़ रहा है यह जानकारी हाल ही में भारतीय शोधकर्ताओं द्वारा किए एक अध्ययन में सामने आई है। बनारस में बच्चों पर किए इस शोध में 16 वर्ष से कम उम्र के बच्चों में संक्रामक रोगों और जलवायु परिवर्तन के बीच के सम्बन्ध का पता चला है। शोध के अनुसार संक्रामक रोगों से...

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जानें कैसे हवा को ठंडा करने की तकनीकें पृथ्वी को गर्म कर रही हैं?

-इंडियास्पेंड, क्या आप जानते हैं कि एयर कंडीशनर जैसी रेफ्रिजेरेशन और कूलिंग तकनीकें 100 करोड़ टन से अधिक कार्बन-डाइऑक्साइड उत्सर्जन (CO2) करती हैं? ये आंकड़े जापान के उत्सर्जन के बराबर हैं, जो 2018 में दुनिया का पांचवां सबसे बड़ा कार्बन-डाइऑक्साइड उत्सर्जक देश था। भारत ने ऊर्जा-बचत और जलवायु-अनुकूल कूलिंग तकनीकों के लिए एक इंडिया कूलिंग एक्शन प्लान (ICAP) तैयार किया गया था, लेकिन विशेषज्ञों के मुताबिक, इसके लॉन्च होने के दो...

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क्या हैं अमीर व गरीब देशों के लिए प्राकृतिक संपदा के मायने?

-डाउन टू अर्थ, जिस समय दुनिया वैश्विक तापमान को नियंत्रित करने के लिए ग्लासगो में संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन फॉर क्लाइमेट चेंज के बैनर तले कॉप-26 में कार्बन बजट पर चर्चा करने में व्यस्त थी, ठीक उसी समय एक अन्य मोर्चे पर एक और महत्वपूर्ण बहस चल रही थी। इस बहस के केंद्र में था कि क्या हम प्राकृतिक संसाधनों के अंधाधुंध उपयोग को नियंत्रित कर सकते हैं? यह बहस उस उपभोग...

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