दिलचस्प है कि इस बार अर्थशास्त्र का नोबल पुरस्कार एक ऐसे शख्स को मिला है, जिसने भारत में गरीबी नापने के प्रचलित तरीकों पर भी सवाल उठाकर इसे सुधारने में अहम भूमिका अदा की है। प्रचलित तरीकों से लोगों द्वारा किए जा रहे उपभोग का सही अनुमान नहीं लग पाता था और वास्तविक गरीबी का चित्र नहीं उभर पाता था। अर्थव्यवस्था में राज्य हस्तक्षेप के समर्थक इस वर्ष के नोबल विजेता...
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महिलाओं के लिए बने माहौल- मृणाल सुमन
रक्षा मंत्री फौज में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने के पक्षधर हैं। लड़ाकू विमानों के पायलट के तौर पर सुझाव आए हैं और यह भी देखा जा रहा है कि महिलाएं युद्ध के मोर्चे पर कैसे जा सकती हैं। सरकार लैंगिक संवेदनशीलता को ध्यान में रख कर ऐसा कर रही है, लेकिन इससे पहले कुछ बातों पर गौर करना होगा। दुनिया भर की सेनाओं में महिलाओं को तमाम स्तरों पर सामाजिक, व्यावहारिक...
More »इनाम और ओहदे लौटाने से क्या होगा? - विष्णु खरे
1954-55 में जब भारत सरकार ने साहित्य अकादेमी की स्थापना की थी तब देश में कांग्रेस का शासन था। उसके संस्थापक-पितरों में जवाहरलाल नेहरू, सर्वपल्ली राधाकृष्णन, मौलाना अबुल कलाम आजाद और डॉ. जाकिर हुसैन जैसे राजनीतिक-सांस्कृतिक युगनिर्माता थे। बाद में कभी इंदिरा गांधी भी अकादेमी की सदस्य रहीं, जब वे केंद्रीय सूचना तथा प्रसारण मंत्री थीं। अकादेमी के संस्थापक-सचिव कृष्ण कृपालाणी थे, जो रबींद्रनाथ ठाकुर की एकमात्र संतान नंदिता के...
More »यूपीए-2 बनाम एनडीए-- सेहत पर किसका खर्च ज्यादा?
क्या यूपीए-2 के शासन के पहले साल के मुकाबले एनडीए की सरकार ने शासन के अपने पहले साल में स्वास्थ्य के मद में कम खर्च किया ? हाल ही में जारी नेशनल हैल्थ प्रोफाइल 2015 के तथ्य ऐसा ही संकेत कर रहे हैं. साल 2009-10 में स्वास्थ्य के मद में खर्च होने वाले हर सौ रुपये में केंद्र सरकार ने 36 रुपये का खर्च किया और राज्य सरकारों ने 64 रुपये...
More »उच्च शिक्षा की होड़ से पहले- चंदन श्रीवास्तव
उच्च शिक्षा-संस्थानों में कौन कितना बेहतर है, यह निर्धारित करने के लिए सरकार ने एक देसी फ्रेमवर्क बनाया है. संस्थानों को उनकी श्रेष्ठता के क्रम में ऊपर से नीचे सजाने की तरकीब आकर्षक लग सकती है और जरूरी भी. जो अभिभावक अपने होनहारों की उच्च शिक्षा पर बरसों की जमा रकम खर्च करने का फैसला लेते हैं, या फिर जो छात्र अपनी पढ़ाई के लिए सूद की ऊंची दरों पर...
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