कुछ साल पहले हमने गंतव्य आधारित कर-प्रणाली का वादा किया था, और वक्त आ गया है जब वह वादा पूरा होगा, अगर पूर्ण रूप में नहीं, तो भी काफी हद तक। ठीक आधी रात के समय, जब कारोबारियों और उपभोक्ताओं को नींद नहीं आ रही होगी, भारत एक नए कर-विधान का आगाज करेगा। ऐसी घड़ी आती है, जो कि हमारे आर्थिक इतिहास में कभी-कभी ही आती है, जब हम पुराने...
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किस हद तक माफ हों कर्ज-- आर. सुकुमार
भारत में इस मानसून की यदि कोई थीम है, तो मेरी राय में वह ‘कर्ज' है। तीन मामले आपके सामने रख रहा हूं। पहला, रिजर्व बैंक अपनी नई ताकतों से परिचय करा रहा है। नई बैंकरप्सी कोड के तहत उसने 12 बड़ी कंपनियों के खिलाफ कार्रवाई की है। इन कंपनियों पर हमारे बैंकिंग सिस्टम के कुल एनपीए यानी डूबे हुए कर्ज का लगभग एक चौथाई हिस्सा बकाया है। यह रकम...
More »बिना जमीन का आसमान-- अरविन्द कुमार सेन
इस बात का जोर-शोर से प्रचार किया जा रहा है कि युवाओं को अपने खुद के उद्यम (स्टार्ट-अप) खोलने चाहिए और सरकारी नीतियों का रुख अब स्टार्ट-अप की ओर ही रहेगा। क्या स्टार्ट-अप की राह पर चल कर हमारे देश में बड़े पैमाने पर व्याप्त बेरोजगारी की समस्या का समाधान किया जा सकता है? जवाब पाने के लिए इस मसले पर तफसील से निगाह डालनी होगी।मोटे अनुमान के मुताबिक आने...
More »रोजगार देनेवाला एफडीआइ आये -- वरुण गांधी
भारत की अर्थव्यवस्था में एक अनोखा अंतर्विरोध दिख रहा है. बीते कुछ दशकों में, खासकर विकासशील देशों में पाया गया है कि मैक्रो इकनॉमिक्स में आर्थिक विकास और रोजगार सृजन के लिए एफडीआइ रामबाण है. ज्यादा एफडीआइ आने का मतलब देश की आर्थिक नीतियों की स्वीकार्यता समझा जाता है और अर्थव्यवस्था की तंदुरुस्ती का संकेतक माना जाता है. पिछले कुछ वर्षों में स्थिर रहने के बाद बीते तीन वर्षों में...
More »रोजगार सृजन की चुनौती--- अरविन्द जयतिलक
देश की अर्थव्यवस्था भले ही कई देशों के मुकाबले दोगुनी वृद्धि कर रही हो लेकिन युवाओं के लिए रोजगार सृजित करने के मामले में देश पिछड़ रहा है। हाल ही में आर्थिक सहयोग तथा विकास संगठन की ताजा रिपोर्ट ने बताया है कि देश में पंद्रह से उनतीस वर्ष के तीस प्रतिशत से अधिक युवाओं के पास रोजगार नहीं है। पिछले वर्ष श्रम मंत्रालय की इकाई श्रम ब्यूरो के रिपोर्ट...
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