-गांव सवेरा, किसान आंदोलन स्थगित हो गया है लेकिन किसानों के कुछ संगठन और किसान नेताओं की तरफ से हरियाणा और पंजाब में चुनाव लड़ने की खबर आ रही है। वैसे तो संयुक्त किसान मोर्चा ने चुनाव लड़ने से मना कर दिया है लेकिन हरियाणा के किसान नेता गुरनाम सिंह चढ़ूनी, जो मूलतः पंजाब के हैं, उन्होंने चुनाव लड़ने की इच्छा जतायी है तो दूसरी ओर प्रतिष्ठित किसान नेता बलबीर सिंह...
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बढ़ती महंगाई से कोई अछूता नहीं, इस पर लगाम जरूरी
-रूरल वॉइस, थोक मूल्य सूचकांक (डब्ल्यूपीआई) के आधार पर थोक बाजारों में मुद्रास्फीति की दर नवंबर में 14.23 फीसदी पर पहुंच गई जो पिछले कई दशकों में सबसे ज्यादा है । यह स्थिति देश के नीति विश्लेषकों और अर्थशास्त्रियों के अनुसार बहुत बडा झटका देने वाली है लेकिन इस स्थिति से वास्तव मे नीतिनिर्धारक कितने चिंतित है इसका अंदाजा लगाना मुश्किल है। पिछले आठ महीने से मुद्रास्फीति दहाई में बनी हुई...
More »उत्तर प्रदेश: मंडियों की कमाई में आई 770 करोड़ रुपए की कमी, विवादित कृषि कानून बना प्रमुख कारण
-न्यूजलॉन्ड्री, उत्तर प्रदेश सरकार ने विधानसभा में एक सवाल के जवाब में बताया कि बीते साल मंडी शुल्क में भारी कमी आई है. जवाब के मुताबिक जहां 2019-20 में मंडी शुल्क के रूप में 1390.60 करोड़ रुपए प्राप्त हुए थे, वहीं 2020-21 में घटकर 620.81 करोड़ रुपए हो गया. मंडी शुल्क में आई इस कमी की एक वजह केंद्र सरकार द्वारा पास किए गए तीन विवादित कृषि कानूनों में से एक कृषि...
More »जीरो बजट खेती वह रोमांटिक गाना है, जिसे किसान चाह कर भी गा नहीं सकते
-द प्रिंट, जीरो बजट खेती का मूल मंत्र यह है कि यदि किसान अपने ही खेत में मेहनत कर रहा है तो उसकी दैनिक मजदूरी का कोई मूल्य नहीं है. प्रत्यक्ष रूप से तो उसे वैसे भी कुछ नहीं मिलता लेकिन जीरो बजट में सरकार कागज पर भी इसे जीरो ही मानेगी. नीति आयोग में बैठे नीति नियंता देश के किसान के बारे में उससे भी ज्यादा जानते हैं और यही तथ्य...
More »भारत में कृषि क्षेत्र को सुधार की जरूरत, किसान आंदोलन की जीत से आगे बढ़कर नया घोषणापत्र बनाने का समय
-द प्रिंट, किसान आंदोलन की ऐतिहासिक जीत के साथ एक खतरा यह बंध गया है कि कहीं आंदोलन यथास्थितिवाद के गर्त में ना लुढ़क जाये. ऐसा ना तो इष्ट-अभीष्ट है और ना ही आंदोलन के लिए व्यावहारिक. हां, हमारे आंदोलन को यथास्थितिवाद के रसातल में ढकेलने का काम एक-दूसरे के विरोधी नजर आने वाले दो खेमों की तरफ से हो सकता है. ऐसा एक खेमा बाजारवादी सुधारों के पैरोकार पंडितों का है...
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