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समग्र स्वास्थ्य नीति के आधार- रितुप्रिया

जनसत्ता 17 जून, 2014 : दुनिया भर में स्वास्थ्य सेवाओं का संकट गहरा रहा है। पिछले डेढ़ सौ सालों में बनीं यूरोप और उत्तरी अमेरिका की सेवाएं उनके लिए भी अत्यधिक महंगी और एकांगी साबित हो रही हैं। मकिंजी कंपनी ने अनुमान लगाया था कि अगर स्वास्थ्य-सेवाओं पर खर्च ऐसे ही बढ़ता रहा तो 2100 में अमेरिका को अपनी सकल आय का सत्तानबे फीसद और यूरोप को साठ फीसद स्वास्थ्य...

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उधर अटका मानसून, इधर अटकी सांसें..

नई दिल्ली। केरल में मानसून के अटकने के साथ ही सभी की सांसें अटक गई हैं। मानसून के कमजोर पड़ने के कारण सूखे की आशंका से जहां किसान परेशान हैं, वहीं आम लोगों को प्रचंड गर्मी से तत्काल निजात मिलना मुश्किल लग रहा है। तय समय से पांच दिन पीछे चल रहे दक्षिण पश्चिम मानसून के खासतौर पर उत्तर पश्चिम और मध्य भारत में कमजोर रहने का अनुमान है। मौसम विभाग...

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किसानों को जागरूक करने में भी घोटाला, बिना जांचे एनजीओ को किया पेमेंट- मोहम्मद इमरान नेवी

जगदलपुर. एक और गोलमाल। इस बार मामला बस्तर का। योजना थी एसएमएस भेजकर किसानों को जागरूक करने की। एनजीओ ने किसानों की फर्जी सूची बनाई और कृषि विभाग को सौंप दी। विभाग के अफसरों ने उसे 7 लाख 29 हजार 97 एसएमएस का भुगतान भी कर दिया। 27 से 29 पैसे प्रति एसएमएस के हिसाब से दो लाख रुपए से ज्यादा। यह जांचे बिना कि सूची सही है या नहीं...

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प्रांतीय गौरव पर सबका हक- रामचंद्र गुहा

कुछ समय पहले कोलकाता के एक अखबार में छपे अपने लेख में मैंने यह तर्क दिया था कि कन्नड़ लेखक, अभिनेता, नर्तक, समाज सुधारक और पर्यावरणविद् शिवराम कारंथ देश की उतनी ही महान शख्सियत थे, जैसे रवींद्रनाथ टैगोर। मैं उनसे मिल चुका हूं। उन्होंने जो कुछ लिखा, उनका तर्जुमा मैंने पढ़ा है। इसके अलावा उनके प्रभावशाली व्यक्तित्व का भी मुझ पर खासा असर रहा है। गिरीश कर्नाड से लेकर यू.आर.अनंतमूर्ति, गिरीश...

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राजनीतिक विमर्श और जन-स्वास्थ्य- नीकी नैनसी

जनसत्ता 9 मई, 2014 : सोलहवीं लोकसभा के चुनाव अपने आखिरी चरण में हैं, लेकिन अभी तक किसी पार्टी ने सामाजिक विकास को लेकर कोई ठोस बहस या तथ्य पर आधारित चर्चा करने की जरूरत नहीं समझी है। किसी भी पार्टी का घोषणापत्र उठा लें, एक बात पर सभी अपना दावा करते नजर आएंगे- आर्थिक और समेकित विकास। इन भारी-भरकम शब्दों के इस्तेमाल में आपको कोई कटौती नहीं मिलेगी, चाहे...

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