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जनता कौन है आखिर?- प्रेम प्रकाश पांडेय

भारत के संविधान में लोक-कल्याणकारी राज्य की स्थापना का स्पष्ट विधान है, जिसमें जन-प्रतिनिधियों, लोक-सेवकों और समूचे तंत्र को लोकहित में काम करने का स्पष्ट निर्देश भी है। 'सरकार' शब्द की कल्पना और अवधारणा ही इसी आधार पर टिकी हुई है। समाज ने जब पहली बार अपने लिए सरकार की जरूरत महसूस की होगी, तो उसके पीछे लोकहित, लोक सुरक्षा और लोकानुराग ही प्रमुख तत्व थे। इस बार 25 जनवरी को...

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अर्थव्यवस्था के मर्ज की दवा- लार्ड मेघनाद देसाई

वर्ष 2014 में भारत की अर्थव्यवस्था के समक्ष पहली चुनौती महंगाई है. इससे निबटना नयी सरकार की सबसे बड़ी जिम्मेवारी होगी. पिछले तीन-चार वर्षो से महंगाई की दर बहुत अधिक रही है. महंगाई की समस्या बहुआयामी है. यह अन्य समस्याओं को भी जन्म दे रही है. इससे देश में बहुत बड़ा संकट आया है. अगर सरकार इन चुनौतियों से मुकाबला करने में सक्षम रही, तो भारत की अर्थव्यवस्था उम्मीदों से...

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अर्थव्यवस्था में नरमी के कारण योजना आयोग का आठ प्रतिशत वृद्धि का लक्ष्य अधर में

नई दिल्ली : वर्ष 2013 में अर्थव्यवस्था में नरमी के मद्देनजर योजना आयोग का 12वीं योजना के लिए आठ प्रतिशत का महत्वाकांक्षी लक्ष्य अधर में लटक गया और विशेषज्ञों का मानना है कि नए साल में मध्यावधि समीक्षा में इसमें संशोधन करेगा. उम्मीद से कमतर वृद्धि के लिए वैश्विक स्थिति को जिम्मेदार ठहराते हुए योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया ने कहा कि 12वीं योजना का वृद्धि का लक्ष्य...

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प्याज 90 रूपए किलो तक पहुंचा, सरकार कर सकती है आयात

नई दिल्ली। देश के प्रमुख शहरों में प्याज का दाम आज अब तक के उच्च स्तर 90 रूपए प्रति किलो तक पहुंच गया। इसको देखते हुए सरकार इसके आयात पर विचार करने लगी है।   कृत्रिम कमी के लिए व्यापारियों को दोष देते हुए सरकार ने आज कहा कि वह कीमत स्थिर होने तक प्याज के निर्यात पर प्रतिबंध लगाएगी। हालांकि इस पर तत्काल प्रतिबंध से इनकार किया। प्रमुख शहरों में प्याज का...

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कुप्रबंध की संस्कृति- हरिवंश

देश, वाचाल वृत्ति, बौद्धिक विलासिता, पर-उपदेश वगैरह की ‘लचर जीवन संस्कृति’ से नहीं चलता. आज के भारत में सरकार, राजनीति से लेकर समाज स्तर पर यही जीवन संस्कृति है. अमर्त्य सेन जिस ‘आर्ग्यूमेंटेटिव इंडिया’ (बहस में डूबे भारत) की बात करते हैं, उसे जमीन पर देखें-समझें तो बात ज्यादा स्पष्ट और साफ होती है. मूलत: हम बातूनी लोग हैं, बिना कर्म बात-बहस करनेवाले. किसी के बारे में कुछ भी टिप्पणी....

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