अकेले नहीं आता अकाल. पानी, प्रकृति और समाज के देशज चिंतक अनुपम मिश्र के लेख का यह शीर्षक अपने आप में बहुत कुछ कह जाता है. कुदरत सूखा देती है, अकाल नहीं. हर चौथे-पांचवें साल हमारे देश में बारिश की कमी होती है. लेकिन जरूरी नहीं कि इससे अन्न की कमी हो, पीने के पानी का संकट हो, इंसानों और मवेशियों की जान पर बन आये, खेती-किसानी से जुड़े हर...
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विकास और जाति का गणित- नीलांजन मुखोपाध्याय
एक बात पर आम सहमति है कि बिहार विधानसभा का चुनाव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए काफी अहम होगा। चूंकि विभिन्न कारणों से केंद्र सरकार को कई नाकामियों का सामना करना पड़ा है, इसलिए बिहार के चुनाव में जीत उन्हें उससे उबरने में मदद कर सकती है। इसके विपरीत, अगर बिहार में भाजपा का प्रदर्शन आशानुरूप नहीं रहता, तो नीतिगत पंगुता की स्थिति पैदा होगी और प्रधानमंत्री मोदी की छवि...
More »चुनावी बाढ़ में सूखे का समाचार- चंदन श्रीवास्तव
हम सारी बातों पर बहस नहीं करते. बहस का विषय वही बातें बनती हैं, जिन्हें महत्वपूर्ण मान कर समाचार के रूप में परोस दिया गया हो. एक समय में एक ही जगह अनेक घटनाएं हो रही होती हैं और वे समान रूप से महत्वपूर्ण हो सकती हैं, लेकिन सबके भाग्य में समाचार होना नहीं लिखा रहता. जो घटनाएं समाचार बनने से रह जाती हैं, वे हमारी चिंता के दायरे से भी...
More »क्लाइमेट चेंज की चपेट में छत्तीसगढ़, जल संकट और सूखे की मार
संदीप तिवारी, रायपुर। विकास के नाम पर जंगलों की अंधाधुंध कटाई, शहरीकरण और उद्योगों के प्रदूषण ने पर्यावरणीय संतुलन बिगाड़ दिया है। नतीजतन जलवायु परिवर्तन के कारण छत्तीसगढ़ में जलसंकट के साथ सूखे का खतरा मंडराने लगा है। इस साल बारिश कम होने से त्राहि-त्राहि मची है। आने वाले सालों में बारिश कम होने से अकाल पड़ने की चेतावनी दी गई है। तापमान बढ़ने से वन्य प्राणियों व आम आदमी...
More »वक़्त की नब्ज़ : विकास की अहमियत---- तवलीन सिंह
मुझे विश्वास है कि भारत की हर समस्या का समाधान है विकास। सो, जब प्रधानमंत्री ने इस बात को बिहार में बार-बार कहा पिछले हफ्ते अपनी आम सभाओं में तो मुझे खुशी हुई। पहले भी कह चुके हैं कई दफा नरेंद्र मोदी कि जब तक पूर्वी छोर के राज्य पश्चिमी छोर के राज्यों के बराबर नहीं पहुंचते हैं विकास की दौड़ में, तब तक भारत की गाड़ी आगे तेजी से...
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