चीन की कहानी किसी परीकथा की तरह है। लाखों गरीबों-मजलूमों का यह देश महज चंद दशकों में ही एक वैश्विक महाशक्ति के रूप में जब उभरकर सामने आया तो सभी हतप्रभ रह गए। हालत यह हो गई?कि चीन को दुनिया की सबसे बड़ी फैक्टरी कहा जाने लगा : एक मैन्युफेक्चरिंग पॉवर हाउस! लेकिन अब लगता है कि चीन के उभार की कहानी जिस तरह से किसी परीकथा की तरह थी,...
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अर्थव्यवस्था के महत्वपूर्ण सदस्य हैं हमारे बुजुर्ग
शिक्षा, सूचना एवं स्वास्थ्य में सुधार और इस कारण जीवन प्रत्याशा में वृद्धि के कारण 60 वर्ष से अधिक उम्र के भारतीयों की संख्या 1971-81 के बीच 5.3 फीसदी से बढ़ कर 5.7 फीसदी तथा 1991-2011 के बीच छह फीसदी से बढ़ कर आठ फीसदी हो गयी. लेकिन, देश में वरिष्ठ नागरिकों के लिए समुचित नीतियां नहीं हैं. अर्थव्यवस्था और समाज में उनकी भूमिका को सम्मान देने...
More »हाथभर उजाला और कोसभर अंधेरा - अनुराग चतुर्वेदी
दुनिया में अमीरों और गरीबों के बीच बढ़ती खाई को लेकर बेहद चौंकाने वाले आंकड़े आए हैं। कल से शुरू हुए अमीर देशों के सम्मेलन से ऐन पहले जारी किए गए इन आंकड़ों को सही मानें तो आज महज 62 धनकुबेरों के पास दुनिया की आधी आबादी के बराबर धन इकठ्ठा हो गया है। ऑक्सफेम के इस सर्वेक्षण में यह भी कहा गया है कि जल्द ही वह स्थिति निर्मित...
More »किसानों को उचित दाम दीजिए- भरत झुनझुनवाला
किसानों की समस्याओं के प्रति सरकार संवेदनशील दिखती है, पर मात्र संवेदनशीलता से बात नहीं बनती है. पाॅलिसी की दिशा भी सही होनी चाहिए. मात्र उत्पादन बढ़ाने से किसान का उद्धार नहीं होगा. साठ के दशक में पूर्वी उत्तर प्रदेश में खेत परती पड़े रहते थे. सिंचाई रहट और ढेकली से होती थी. आज पूरे क्षेत्र में ट्यूबवेल का जाल बिछ गया है. बैल के स्थान पर ट्रैक्टर से खेती हो...
More »चमक-दमक के पीछे छिपी कालिख को पहचानें - धर्मेंद्रपाल सिंह
आम धारणा यह है कि देश के बाहर जाने वाले काले धन का मुख्य स्रोत नेताओं या बड़े सरकारी अफसरों को मिलने वाली रिश्वत, घरेलू व्यापारियों द्वारा इनवॉइस में हेराफेरी से होने वाली दो नंबर की कमाई या हवाला कारोबार से उपजा पैसा है। लेकिन काले धन पर ग्लोबल फाइनेंशियल इंटिग्रिटी (जीएफई) की ताजा रिपोर्ट पढ़ने के बाद यह धारणा पुर्जा-पुर्जा होकर बिखर जाती है। जीएफई की हाल माह में...
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