जनसत्ता 19 अप्रैल, 2013: पिछले कुछ दिनोंसे यात्रा पर हूं और जिस शहर में गया वहां उत्सुकतापूर्वक मैंने हिंदी के अखबार पढेÞ, ताकि जान सकूं कि उनमें किस तरह की खबरें छपती हैं। किसी भी दिन कोई ऐसा अखबार नहीं मिला, जिसमें जाति के विषय में खबर न छपी हो। जाति का सम्मलेन, जाति की प्रतिभाओं का सम्मान, जाति के किसी समारोह में प्रदेश के वरिष्ठ नेताओं की उपस्थिति, जबकि...
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गरीबों के हक का बंदरबांट!
आज पूरा झारखंड, इसके सभी 24 जिले, उग्रवाद की चपेट में है। राज्य के अधिकांश संसाधन और कोष विकास कार्यक्रमों की बजाय उग्रवाद से टक्कर लेने पर खर्च होते हैं। विकास थम गया है। सबसे पिछड़े राज्यों की पंक्ति में खड़ा है झारखंड। यह दशा साल दो साल में नहीं, दशकों से चली आ रही उपेक्षा का नतीजा है। समीक्षा होती है, और सभी मानते हैं कि झारखंड में सरकारी मशीनरी...
More »मर्ज कुछ इलाज कुछ- मुकेश कुमार
जनसत्ता 23 मार्च, 2013: भारतीय प्रेस परिषद के अध्यक्ष न्यायमूर्ति मार्कंडेय काटजू ने पत्रकारों की योग्यता मापने के पैमाने तय करने के जिन उपायों की बात की है उनसे स्वाभाविक ही विवाद पैदा हो गया है। उनके अव्यावहारिक नुस्खों से किसी भी तरह सहमत नहीं हुआ जा सकता। पत्रकारिता में आई गिरावट के लिए जिन चीजों को वे जिम्मेदार बता रहे हैं, उन्हीं से पता चलता है कि वे समस्या...
More »समानता का सपना- रुचिरा गुप्ता
जनसत्ता 14 मार्च, 2013: कोई भी बदलाव डरावना होता है। खासकर वैसा बदलाव, जो राजनीति और यौन भूमिका दोनों को प्रभावित करता है। सोलह दिसंबर को दिल्ली में हुए सामूहिक बलात्कार कांड के व्यापक विरोध ने देश में एक चिनगारी सुलगा दी है। पुरुषों की हर तरह की हिंसा को खत्म करने के लिए स्त्रियों के आंदोलन की मांग लगातार होती रही है। विरोध-दर-विरोध में युवतियों का साथ युवक भी दे...
More »खाद्य सुरक्षा बिल- कुछ बुनियादी बातें
संसद के मौजूदा(बजट) सत्र में आखिरकार खाद्य सुरक्षा बिल पर चर्चा होने जा रही है। यह बिल यूपीए सरकार ने साल 2011 में लोकसभा में पेश किया था। आहार और बाल-स्वास्थ्य के मुद्दे पर काम करने वाले विभिन्न संगठनों, स्वयंसेवी संस्थाओं और राज्यों द्वारा प्रस्तुत विविध आलोचनाओं के आलोक में इस बिल में कई और बदलाव किए जाने की संभावना है।यहां प्रस्तुत सामग्री में कोशिश की गई है कि भोजन का अधिकार बिल के बारे में जानकारी क्या-क्यों-कैसे-कौन...
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