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न्यूज क्लिपिंग्स् | गरीबों के हक का बंदरबांट!

गरीबों के हक का बंदरबांट!

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published Published on Apr 4, 2013   modified Modified on Apr 4, 2013
आज पूरा झारखंड, इसके सभी 24 जिले, उग्रवाद की चपेट में है। राज्य के अधिकांश संसाधन और कोष विकास कार्यक्रमों की बजाय उग्रवाद से टक्कर लेने पर खर्च होते हैं। विकास थम गया है। सबसे पिछड़े राज्यों की पंक्ति में खड़ा है झारखंड।

यह दशा साल दो साल में नहीं, दशकों से चली आ रही उपेक्षा का नतीजा है। समीक्षा होती है, और सभी मानते हैं कि झारखंड में सरकारी मशीनरी आम लोगों के हित को नजरंदाज करती रही है। भ्रष्टाचार का बोलबाला, और फिर हाशिये पर धकेल दिये जाते गरीब गुरबा। नक्सलवाद माओवाद के लिए इससे उर्वर जमीन और क्या होगी! 2000 में अलग राज्य बना। लेकिन, हालात तो और भी बदतर होते चले गए! आज पूरे सूबे पर हिंसक उग्रवाद फन काढ़े हुए है। केंद्र से लेकर राज्य तक के तमाम संसाधनों एवं अरबों खर्च के बाद भी झारखंड से उग्रवाद क्यों टस से मस नहीं हो रहा है? कारणों को समझना है तो कई जिलों की तरह चतरा भी एक ‘आदर्श\' उदाहरण हो सकता है।

चतरा की गिनती उन चंद इलाकों में होती रही है जहां से झारखंड में उग्रवाद की घुसपैठ हुई थी। ठीक है कि आज नक्सलवाद माओवाद वहां कमजोर हुआ, बिखराव की ओर है, लेकिन इसके पीछे उनकी अंदरूनी कलह कारण है, न कि सरकारीतंत्र को दिया जाने लायक कोई श्रेय। भ्रष्टाचार बदस्तूर जारी है। नेता-माफिया-अधिकारी गंठजोड़ आज भी सशक्त दिखाई दे रहा है। गरीब गुरबों के हित में आवाज उठती है, ऊपर तक पहुंचती भी है लेकिन शासन के शीर्ष पर बैठे अधिकारी, नेता, मंत्रियों की संवदेनशीलता जैसे कुंद पड़ चुकी है। केंद्र प्रायोजित ‘आइएचएसडीपी\' यानी इंटिग्रेटेड हाउसिंग एंड स्लम डेवेलॉपमेंट प्रोग्राम (मलिन बस्ती आवास योजना) के तहत चतरा नगर पर्षद को पहले फेज में मिली 19 करोड़ की राशि का महीनों बंदरबांट होता रहा। उसी योजना से कई पैसेवालों ने नये मकान बनवा लिये। जबकि योजना के मानदंड के अनुसार यह विशेष लाभ गरीबी रेखा से नीचे गुजर बसर कर रहे एसटी, एससी, ओबीसी एवं अल्पसंख्यक वर्ग के परिवारों को मिलना था।

पूरी रिपोर्ट:

जब बाड़ ही खा गए खेत!
एक देशी कहावत हैः जब बाड़ ही खा गई खेत! कुछ ऐसा ही हुआ चतरा के गरीब गुरबों के साथ। केंद्र प्रायोजित ‘आइएचएसडीपी\' यानी इंटिग्रेटेड हाउसिंग एंड स्लम डेवेलॉपमेंट प्रोग्राम (मलिन बस्ती आवास योजना) के तहत चतरा नगर पर्षद को पहले फेज में 19 करोड़ की राशि मिली। तय हुआ कि इस राशि से गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन कर रहे 932 परिवारों को पक्का छत उपलब्ध कराया जाएगा। जिम्मेवारी सौंपी गई स्थानीय वार्ड पार्षदों पर। परिकल्पना थी कि पार्षद तो जमीन से चुनकर आये जनप्रतिनिधि होते हैं। आम जनता से रोज का मेल जोल होता है। एक दूसरे का दुःख दर्द अच्छी तरह समझते हैं। लेकिन, पैसे की चमक ने सारी इंसानियत को दरकिनार कर दिया। 600 घर अब तक बन चुके हैं अथवा निर्माणाधीन हैं। जानकारों की मानें तो ये असली हकदार की जगह पैसेवालों ने हासिल कर लिये, घूस और भाई भतीजावाद के जरिए। इस घोटाले को लेकर कुछ स्थानीय लोगों, संस्थाओं ने ही आवाज उठायी। स्थानीय उपायुक्त से लेकर नगर विकास विभाग के सचिव, मंत्री मुख्यमंत्री, राज्यपास सहित तमाम जांच एजेंसियों के पास गुहार लगायी गई। लेकिन, सभी चुप्पी साधे रहे।

आज राज्य भर में नगर निकाय चुनाव होने जा रहा है। इसे दिखाकर, सरकारी नीतिकार अधिकारों के विकेंद्रीकरण और अंतिम पायदान पर मौजूद संस्थाओं के सशक्तिकरण का दंभ कर रहे हैं। लेकिन, चतरा के इस घोटाले में वहां के निकाय और चुने गए वार्ड पार्षद से लेकर अन्य पदधारियों की अंतर्लिप्तता ही सामने आयी है। अब फिर चुनाव हो रहा है। क्या गारंटी की वही भ्रष्ट लोग, गरीबों का हक मारनेवाले तिकड़मबाज फिर से उन कुर्सियों पर कब्जा न कर लें?

चतरा की बदहाल झुग्गी झोपड़ियों में रहनेवालों के लिए केंद्र सरकार द्वारा प्रायोजित आइएचएसडीपी के तहत प्रति परिवार 1.48 लाख दिये जाने की घोषणा हुई। डीपीआर (डिटेल प्रोजेक्ट रिपोर्ट) के तहत पहले चरण में चतरा नगरपालिका के वार्ड क्रमांक1 से 12 तक (वार्ड 10 को छोड़कर) में 932 परिवारों का लाभुक के रूप में चयन किया गया। कुल लागत करीब 19 करोड़ थी। काम शुरू हुआ। लेकिन चयन में कुछ तकनीकी अड़चनें आने पर राज्य सरकार ने एक पत्र (क्रमांक1565, दिनांक 14.05.11) जारी किया और कहा कि अयोग्य व्यक्तियों को हटाकर जरूरतमंदों को ही चुना जाए। जरूरी हो तो दूसरें वार्डों से भी जरूरतमंदों का चयन हो सकता है। गरीबों के हिस्से के सरकारी सहयोग पर बिचौलियों की नजर तो पहले से थी ही, इस पत्र की आड़ में सरकारी मशीनरी को भी जैसे बहाना मिल गया। स्थानीय नागरिक मोर्चा के शिकायतकर्ताओं के अनुसार, आवास के लिये निर्गत राशि का भुगतान मनमानी तरीके से किया जाने लगा। लाभुकों के चयन एवं अनुमोदन की जिम्मेवारी नगर पर्षद अध्यक्ष, वार्ड पार्षद, नगरपालिका के कार्यपालक पदाधिकारी, संबंधित विभाग के अभियंता तथा स्थानीय उपायुक्त की होती है। मोर्चा के अनुसार, इस आवास सुविधा के लिए बोलियां लगने लगीं। 20 हजार से लेकर 40 हजार तक घूस लिया जाने लगा। यही नहीं, उस अनुमोदन समिति में शामिल कई पदधारियों ने अपने रिश्ते नाते और चहेतों के नाम लाभुकों में शामिल कर लिया। हालिया स्थिति यह है कि अब तक करीब साढ़े सात सौ लोगों के नाम पर आबंटन हो चुका है। इनमें एक बड़ी संख्या ऐसे लोगों की है जिनके पास पहले से ही पक्का मकान था। घूस के बूते, इस सरकारी सुविधा का लाभ उठाकर उन्होंने निर्धारित सरकारी जमीनों पर कई मंजिली इमारतें खड़ी कर लीं हैं। और झोपड़ियों में रह रहे गरीब और उनकी बस्तियां पहले की तरह ही बदहाल हैं।

पार्षदों ने वसूला, आधा खुद रखा आधे में बाकी अधिकारियों को बांटा : डा जावेद

नगर पर्षद के निवर्तमान उपाध्यक्ष डा सलीम जावेद के अनुसार, अबतक करीब छह सौ मकान बन चुके हैं या लेआउट हुआ अथवा दूसरी खेप की राशि आबंटन के इंतजार में अधूरा है। अधिसंख्य लोगों से 30 से 40 हजार रूपये घूस के तौर पर लिया गया। अधिकांश मकान डीपीआर में तय नक्शे को पूरी तरह नजरंदाज करते हुए बनाये जा रहे हैं। डा जावेद बताते हैं कि कुछ लोगों ने घूस की रकम देने से इनकार किया तो उनकी दशा आज भी ज्यों की त्यों बदहाल है। उनमें पुराना वार्ड 12 के आलम दर्जी भी हैं, जिन्हें अंततः मकान निर्माण की राशि नहीं मिली। उसी तरह अब्दुल रशीद का नाम भी है डीपीआर में है लेकिन मकान नहीं बना सके। मुस्तरी खातुन को एग्रीमेंट के बाद 25 हजार मिला लेकिन पार्षद को पैसा नहीं दिया तो उनका मकान अधूरा पड़ा है। डा जावेद ने इस मुद्दे को दूर तक ले जाने की कोशिश की। लेकिन, माफिया गंठजोड़ ने उनके ही अधिकार सीज करवा दिये। स्थानीय अधिकारियों ने रांची मुख्यालय में नगर विकास सचिवालय से एक आदेश जारी करवा कर उपाध्यक्ष को उस समिति से अलग करवा दिया जो चयनित लाभुकों का अनुमोदन करता है। विरोधियों ने नगर पर्षद उपाध्यक्ष डा जावेद पर कई मुकदमें जड़ दिये हैं। डा अख्तर पेशे से होम्योपैथी डाक्टर हैं और झारखंड विकास मोर्चा (मरांडी) की केंद्रीय कमिटी के सदस्य भी हैं।

डा जावेद कहते हैं कि कुछ लाभुकों को छोड़ दें तो पार्षदों ने अधिकांश से 30 से 40 हजार वसूला। आधी रकम खुद रखते और शेष हिस्से से पर्षद और जिला प्रशासन के अधिकारियों को जाता। रिश्‍वत मांगनेवालों का कहना होता था, सरकार डेढ़ लाख दे रही है, चालीस पचास भी खर्च कर दो तो बाकी बचे एक लाख तो तुमको बैठे बिठाये मिल रहा है! जिसने नहीं दिया उनका मकान आज तक नहीं बना।

डा जावेद का दावा है कि उन्हीं के प्रयास से निगरानी ने एक पार्षद गुलाम मेंहदी को रिश्‍वत लेते हुए रंगे हाथ पकड़ा था। डा जावेद ने एक और आवेदन देकर स्लम आवास योजना घोटाले में पूरे चतरा नगर पर्षद के खिलाफ जांच की मांग की है। डा जावेद चतरा नागरिक मोर्चा के संयोजक भी रहे हैं। लेकिन, आपसी मतभेदों के कारण वह अब उस पद पर नहीं हैं। डा जावेद बताते हैं कि चतरा नगर पर्षद के तत्कालीन कार्यपालक अधिकारी के खिलाफ 8 फीसदी कमिशनखोरी की शिकायत राज्यपाल से की थी। लेकिन, माफिया गंठजोड़ ने उनके जाली हस्ताक्षर करके उनके खिलाफ ही मामले को मोड़ दे दिया। नौबत गिरफ्तारी तक की आयी। लेकिन जांच में उन्हें बरी कर दिया गया।

चतरा जिला नागरिक मोर्चा ने भी घोटालेबाजों के खिलाफ जंग छेड़ी
स्लम बस्ती आवास योजना में घोटाले को लेकर चतरा जिला मोर्चा ने नीचे से ऊपर तक अधिकारियों नेताओं मंत्रियों के यहां गुहार लगायी। जिले के उपायुक्त से शिकायत की। जांच का आश्‍वासन भी मिला। लेकिन, जांच नहीं हुई। इसके अलावा उत्तरी छोटानागपुर के प्रमण्डीलीय आयुक्त, नगर विकास सचिव, पुलिस महानिदेशक, मुख्यमंत्री, उपमुख्यमंत्री व राज्यपाल एवं नगर विकास मंत्री को आवेदन दिया। लेकिन कोई संतोषजनक कार्रवाई नहीं हुई। मुख्यमंत्री ने जांच का आदेश भी दिया लेकिन सबकुछ ठंढ़े बस्ते में जाता रहा। इस बीच एकमात्र निगरानी विभाग ने एक वार्ड पार्षद गुलाम मेंहदी को रिश्‍वत लेते हुए रंगे हाथों पकड़ा। निवर्तमान पार्षद और मोर्चा के सदस्य गोविंद राम के अनुसार, अब वह आरोपी पार्षद छूट चुका है ऐर फिर से उसी धंधे में लिप्त है। मोर्चा का आरोप तो यहां तक है कि पार्षद मेंहदी अकेला नहीं पर्षद के अधिकांश सदस्यों के हाथ इसी काली कमाई से रंगे हुए हैं। 28 अगस्त 2012 को निगरानी ब्युरो के अपर महानिदेशक को सौंपे गए आवेदन में मोर्चा सदस्यों ने अपनी जान माल और प्रतिष्ठा की रक्षा की गुहार भी लगाई है। उनका कहना है कि भ्रष्टचारियों के खिलाफ अभियान छेड़ने से उनके खिलाफ साजिश रची जा रही है। आवेदनकर्ताओं में लक्ष्मीकांत शुक्ला, धनंजय प्रजापति, इमदाद अली, शैलेंद्र कुमार सिंह, उमाशंकर, कुलेश्‍वर यादव, आदि के नाम शामिल हैं। बताते चलें कि मोर्चा ने थक हार कर अंत में झारखंड के लोकायुक्त के यहां भी तमाम उपलब्ध दस्तावेजों आदि के साथ अर्जी लगायी है। (इनपुट्सः रणजीत वर्मा.)


http://newswing.com/node/2346


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