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झाबुआ के हलमा को गहराई से देखने की कोशिश कीजिए, वर्ल्ड बैंक उथला नज़र आएगा

वह भीषण गर्मी का महीना था, साल 1998, तारीख थी 11 मई, उस दिन पोखरण में ‘बुद्ध मुस्कराए’ थे. इस मुस्कुराहट का स्वाभाविक परिणाम यह हुआ कि दुनिया के तमाम ताकतवर देश मुस्कराना भूल गए. आनन-फानन में कई प्रतिबंध भारत पर लगा दिए गए. अमेरिकी दबाव इस कदर था कि भारत के पुराने दोस्त रूस ने भी हमें क्रायोजनिक इंजन देने से मना कर दिया. उस समय भारत के प्रधानमंत्री...

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हिंदू राष्ट्रवाद को चुनौती देना चाहते हैं ये दलित ब्रैंड्स

दक्षिण मुंबई में एक महंगे रीटेल स्टोर में जिस समय शहर के संपन्न लोग दलित उद्धार और 'बहिष्कृत लोगों' व फ़ैशन की दुनिया के मेल पर बात कर रहे थे, 32 साल के सचिन भीमा सखारे बाहर एक कोने में खड़े थे. ये सब हो रहा था बीते पाँच दिसंबर को. सचिन भीमा सखारे बताते हैं कि स्टोर में हुए इवेंट में 'चमार फ़ाउंडेशन' के सदस्यों द्वारा बनाए गए रबर के...

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आप्रवासियों और शरणार्थियों की संख्या को लेकर फैलाए गए भ्रमों और तथ्यहीन कुतर्कों को खारिज करते आंकड़ें

विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय और राष्ट्रीय स्रोतों के आंकड़ें आप्रवासियों और शरणार्थियों की संख्या को लेकर फैलाए गए भ्रमों और तथ्यहीन कुतर्कों को खारिज करते हैं.   अनेकों मीडिया रिपोर्टें यह खुलासा करती हैं कि राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (NRIC), जिसे देशभर में लागू किए जाने की उम्मीद है, के लिए देश के विभिन्न हिस्सों में डिटेनशन सेंटर बनाए जा रहे हैं. हालांकि मीडिया के सामने सरकार एनआरसी और राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर के बीच किसी भी प्रकार के संबंध से इनकार कर रही है,...

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कीटनाशकों पर अंकुश से कम हो सकती हैं किसान-आत्महत्याएं- नई रिपोर्ट

दुनिया में आत्महत्या के हर पांच मामले में एक मामला कीटनाशक के जरिये आत्महत्या करने का होता है और आत्महत्या का यह तरीका निम्न आय-वर्ग में शामिल देशों के ग्रामीण तथा खेतिहर इलाकों में देखने को मिलता है. यह कहना है हाल ही में प्रकाशित पुस्तिका प्रीवेंटिंग स्यूसाइड: ए रिसोर्स फॉर पेस्टिसाइड रजिस्ट्रार्स एंड रेग्युलेटर का.   विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) तथा फूड एंड एग्रीकल्चर ऑर्गनाइजेशन ऑफ युनाइटेड नेशन्स (एफएओ) द्वारा संयुक्त रुप से प्रकाशित इस...

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गरीबों के जीवन का अर्थशास्त्र-- नीरंजन राजाध्यक्ष

सड़क पर डोसा बेचने वाली महिला के पास एक भूखे अर्थशास्त्री के जाने का जिक्र भला क्यों होगा, जब तक कि वह अर्थशास्त्री अभिजीत वी बनर्जी न हों। ऐसा आंध्र प्रदेश के छोटे से शहर गुंटूर के एक गरीब इलाके में हुआ था। असल में, सुबह के करीब नौ बजे मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (एमआईटी) का यह 49 वर्षीय प्रोफेसर नाश्ते के लिए डोसा खरीदने गया था। सड़क पर ताजा...

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