संयुक्त राष्ट्र संघ के जलवायु परिवर्तन सम्मेलनों की शुरुआत जहां दुनिया भर के राजनेताओं, पर्यावरणविदों और वैज्ञानिकों के लिए पिघलते हुए ग्लेशियर, जलस्तर बढ़ते महासागरों, धसकते पहाड़ों, बदलते मौसम और गर्म होती धरती की चिंताओं का केंद्र थी, वहीं कोपेनहेगन और कानकुन तक पंहुचते यह चिंता विकसित दुनिया के हितों को साधने की कूटनीतिक चालों को पूरा करने के साधन स्थलों में बदल चुकी थी। अंततोगत्वा इस नीले ग्रह को बचाने...
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रैन बसेरों में दी जाए मूलभूत सुविधाएं
नई दिल्ली, जागरण संवाददाता: राजधानी के रैन बसेरों में मूलभूत सुविधाएं देने के लिए दिल्ली नगर निगम , नई दिल्ली नगर पालिका परिषद व दिल्ली जल बोर्ड द्वारा आपस में तालमेल न बनाए जाने पर उच्च न्यायालय ने निराशा जाहिर की है। अदालत ने गरीबों के लिए बनाए एक अस्थाई रैन बसेरों को दिल्ली विकास प्राधिकरण द्वारा ढहाए जाने पर भी नाराजगी जताते हुए एमसीडी, एनडीएमसी, डीडीए व...
More »अनुत्तरित रहा पर्यावरण का प्रश्न- सुनीता नारायण
इसमें कोई संदेह नहीं कि कानकुन बैठक से दुनिया के देशों को बहुत कम उम्मीद थी और नतीजा भी ठीक वैसा ही रहा। कोपेनहेगन बैठक में शेष विश्व और औद्योगिक देशों के बीच जिन बिंदुओं को लेकर तकरार थी उनका कोई समाधान नहीं निकला। अब चर्चा का बिंदु इस पर है कि किसे कितना ज्यादा प्रदूषण फैलाने का अधिकार है अथवा होना चाहिए। आर्थिक लाभ और पर्यावरण संतुलन को लेकर पूरा विश्व...
More »दलितों के 8.000 करोड़ रु. हजम कर गई सरकार
जयपुर. सरकार ने पांच साल में दलितों के हक के 8351.69 करोड़ रुपए दूसरे मदों में खर्च कर दिए। विभाग के मंत्रियों को यह तक पता नहीं है कि दलितों का यह पैसा कहां और कैसे खर्च करना है? यह सब तब हो रहा है जब प्लानिंग कमीशन सभी विभागों को ‘अनुसूचित जाति उप योजना’ (एससीएसपी) के तहत सरकारी योजनाओं में दलितों के हक का पैसा अलग से अकाउंट खोलकर उसमें...
More »कमजोर महिलाओं की ताकत बना एक बैंक- आशीष कुमार अंशु
वनिता जालिन्दर पीसे आज से कुछ साल पहले लोन के लिए बैंकों के चक्कर लगा रही थीं। बैंकों की औपचारिकता ओं और पेपर वर्क की वजह से उन्हें लोन नहीं मिल पा रहा था। निराश होकर वह घर बैठ गईं। उन्होंने लोन की आशा ही छोड़ दी। तभी एक दिन मानदेसी महिला संगठन के कुछ लोग उनके पास आए और उन्हें आसान शर्तों पर लोन मिल गया। वर्ष 2003 में उन्होंने...
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