मनमोहनॉमिक्स के करीब 20 साल पूरे हो रहे हैं, अतः उस कोरस को याद करना बहुत वाजिब होगा, जिसका राग मुखर वर्ग पहले तो खूब गर्व से और फिर खुद को दिलासा देने के लिए अलापता रहा हैः 'आप चाहे जो भी कहें, हमारे पास डॉ मनमोहन सिंह के रूप में सबसे ईमानदार आदमी हैं. उनके खिलाफ एक शब्द भी नहीं बोला जा सकता'. लेकिन ऐसा अब कम सुनने को...
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इस प्रतिबंध के बड़े खतरे- योगेन्द्र यादव
बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर के कार्टून पर मचा हंगामा पिछले हफ्ते भर से एक विडंबना की शक्ल में मेरी सोच से लगातार टकरा रहा है. राष्ट्रीय पाठय़पुस्तकों में शायद पहली बार आंबेडकर को भारतीय गणतंत्र के प्रमुख संस्थापकों के तौर पर दिखाने की कोशिश की गयी थी. लेकिन, संसद में इस कोशिश पर ही इस दलील के साथ हमला बोला गया कि किताब में शामिल एक कार्टून उनका अपमान करता है....
More »बुजुर्गों के लिए इज्जत की जिन्दगी -आईए, एक अभियान का हिस्सा बनें
बुजुर्गों की जीवन-संध्या पूरी गरिमा और बिना किसी अभाव के बीते- यह हर सभ्य समाज का नैतिक दायित्व है। बुजुर्गों के प्रति इसी दायित्व-भाव से पेंशन परिषद् दिल्ली में जन्तर-मन्तर पर अगामी 7 मई से 11 मई(2012) तक एक अभियान के तहत धरने का आयोजन कर रहा है। धरने के आयोजन के पीछे मकसद एकदम सरल और सहज है, और इस मकसद को पूरा करने का वक्त अब आ चुका है। आगे की पंक्तियों को...
More »इंडिया और भारत के उपभोक्ता- मृणाल पांडेय
उपभोक्तावाद पर कई बेदिमाग टिप्पणियों से यह भी साफ झलकता है कि कई महानगरीय लेखकों की नजर अहं भरी है। उनकी राय है कि गांव या कसबे का बेचारा मनई पूरी तरह बाजार के हाथों की कठपुतली बन नाच रहा है। शहरी बड़े भैया लोगों का यह तर्क आगे जाकर शहरों, खासकर बड़े शहरों के उपभोक्ता को एक अनैतिक उपभोगवादी बाजार बंधु और ग्रामीण मजूर किसानों का खतरनाक वर्ग शत्रु...
More »झारखंड: संगीनों पर सुरक्षित गांव- चंद्रिका की रिपोर्ट
यह उन लोगों की कहानियां हैं, जो आजादी, इंसाफ और शांति के साथ जीना चाहते हैं. अपने गांव में खेतों में उगती हुई फसल, अपने जानवरों, अपनी छोटी-सी दुकान और अपने छोटे-से परिवार के साथ एक खुशहाल जिंदगी चाहते हैं. लेकिन यह चाहना एक अपराध है. अमेरिका, दिल्ली और रांची में बैठे हुक्मरानों ने इसे संविधान, जनतंत्र और विकास के खिलाफ एक अपराध घोषित कर रखा है. उनकी फौजें गांवों...
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