भारत में आर्थिक सुधारों को लागू किये जाने के 22 वर्ष बाद भी इस पर मंथन का दौर जारी है. पिछले दो दशकों के अनुभव हमें बता रहे हैं कि आर्थिक उदारीकरण के पैरोकारों ने जिस स्वर्णिम भविष्य का हमसे वादा किया था, वह सच्चाई से दूर, छल से भरा हुआ और भ्रामक था. इन वर्षों में आर्थिक उदारीकरण विकास के चमचमाते आंकड़ों पर सवार होकर हम तक जरूर आया,...
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सरकारी वादे अमल में आने से ही साफ होगी यमुना
मनोज मिश्र, नई दिल्ली। दिल्ली सरकार और दिल्ली की अन्य सरकारी एजंसियां अगर केवल इसी वायदे को अमल में लाए कि अब गंदगी और कचरा यमुना नदी में नहीं जाने देंगे तब वास्तव में सकारात्मक पहल हो पाएगी। ऐसा हो जाए तो एक निश्चित समय के बाद सरकारी योजना वाली यमुना एक्शन प्लान से भी यमुना को साफ करने की समय सीमा तय की जा सकेगी। जिस दिल्ली के 48...
More »खाद्यान्न उत्पादन 3.5%घटने के आसार
मौजूदा फसल वर्ष 2012-13 (जुलाई-जून) में देश का कुल खाद्यान्न उत्पादन 3.5 फीसदी गिरकर 2501 लाख टन रहने की संभावना है। थिंक टैंक सेंटर फोर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (सीएमआईई) के अनुसार पिछले साल कमजोर मानसून के कारण खरीफ के उत्पादन में गिरावट आने से कुल खाद्यान्न उत्पादन कम रहेगा। सीएमआईई की मासिक रिपोर्ट के अनुसार...
More »खाद्य सुरक्षा बिल- कुछ बुनियादी बातें
संसद के मौजूदा(बजट) सत्र में आखिरकार खाद्य सुरक्षा बिल पर चर्चा होने जा रही है। यह बिल यूपीए सरकार ने साल 2011 में लोकसभा में पेश किया था। आहार और बाल-स्वास्थ्य के मुद्दे पर काम करने वाले विभिन्न संगठनों, स्वयंसेवी संस्थाओं और राज्यों द्वारा प्रस्तुत विविध आलोचनाओं के आलोक में इस बिल में कई और बदलाव किए जाने की संभावना है।यहां प्रस्तुत सामग्री में कोशिश की गई है कि भोजन का अधिकार बिल के बारे में जानकारी क्या-क्यों-कैसे-कौन...
More »जलवायु संकट के बादल- अतुल कुमार सिंह
जनसत्ता 26 अक्टुबर, 2012: भारत समेत दुनिया के सामने दो सबसे अहम समस्याएं भुखमरी और जलवायु संकट हैं। ये दोनों ऐसे मुद्दे हैं जिनसे न केवल मानवता के भविष्य बल्कि पूरे जीव-जगत और अंतत: दुनिया के अस्तित्व का प्रश्न जुड़ा हुआ है। विश्व भर में इन मुद्दों पर खासी चर्चा और चिंताएं भी हैं। लेकिन इनसे निपटने के लिए जो उपाय सामने आ रहे हैं उनमें न तो मुकम्मलपन दिखता है और...
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