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खेतों में पसीना बहा रहा नक्सली बद्री राय

दुमका : हरसंत का अतीत होता है और हर अपराधी का भविष्य. केंद्रीय कारा में लिखी इसी पंक्ति ने एक अपराधी का भविष्य सुधार दिया है. दुमका सहित आसपास के क्षेत्र में नक्सलियों का जनक माना जाने वाला हार्डकोर उग्रवादी बद्री राय जेल से छूटने के बाद मुख्यधारा में लौट आये हैं. इन दिनों वह अपने गांव सरुवापानी में बंजर जमीन को खेतीलायक बनाने और फसल उपजाकर अपने जीवन को वह...

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भूमि अधिग्रहण और आदिवासी

जनसत्ता 1 मई, 2013: आजकल भूमि अधिग्रहण विधेयक की चर्चा जोरों से चल रही है। वन अधिनियम पहले ही पास कराया जा चुका है। ये दोनों ही कदम आदिवासियों के जीवन को प्रभावित करने वाले हैं। जयराम रमेश का मंत्रालय बार-बार बदला जाना एक विडंबना ही है। जब-जब उन्होंने अपने मंत्रालय से कोई जन-भावन कदम उठा कर हस्तक्षेप करना चाहा, उनका मंत्रालय ही बदल दिया गया! चाहे वह वन या...

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जाति की जटिलताएं- योगेश अटल

जनसत्ता 19 अप्रैल, 2013: पिछले कुछ दिनोंसे यात्रा पर हूं और जिस शहर में गया वहां उत्सुकतापूर्वक मैंने हिंदी के अखबार पढेÞ, ताकि जान सकूं कि उनमें किस तरह की खबरें छपती हैं। किसी भी दिन कोई ऐसा अखबार नहीं मिला, जिसमें जाति के विषय में खबर न छपी हो। जाति का सम्मलेन, जाति की प्रतिभाओं का सम्मान, जाति के किसी समारोह में प्रदेश के वरिष्ठ नेताओं की उपस्थिति, जबकि...

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सुधारों की दिशा और आम आदमी( पू्र्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के जन्मदिवस पर प्रभात खबर की विशेष प्र?

भारत में आर्थिक सुधारों को लागू किये जाने के 22 वर्ष बाद भी इस पर मंथन का दौर जारी है. पिछले दो दशकों के अनुभव हमें बता रहे हैं कि आर्थिक उदारीकरण के पैरोकारों ने जिस स्वर्णिम भविष्य का हमसे वादा किया था, वह सच्चाई से दूर, छल से भरा हुआ और भ्रामक था. इन वर्षों में आर्थिक उदारीकरण विकास के चमचमाते आंकड़ों पर सवार होकर हम तक जरूर आया,...

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हाशिये का समाज और राज- हरिराम मीणा

जनसत्ता 11 मार्च, 2013: किसी भी राष्ट्र-समाज के उन घटकों के सम्मिलित समाज को हाशिये का समाज कहा गया है, जो अगुआ तबके की तुलना में सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक स्तर पर किन्हीं कारणों से पीछे रह गया है। इस सामान्यीकृत परिभाषा को विस्तार से समझने से पहले हाशिये शब्द पर थोड़ा विचार करना जरूरी है। किसी पृष्ठ में हस्तलेखन या टंकण करने से पूर्व शीर्ष पर और मुख्य रूप से बार्इं ओर...

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