जो देश अपने हाल-फिलहाल का इतिहास याद नहीं रखते, वे एक ही तरह की दुर्घटना दोहराने का खतरा उठाते हैं। देश की दो तिहाई आबादी 35 साल से नीचे की है। यदि इनमें से किसी से आपातकाल लगाए जाने के दिन यानी 26 जून, 1975 का महत्व पूछिए तो उनके चेहरे पर आश्चर्य के भाव उभरते हैं। कई बार 55 साल के लोगों से भी ऐसा जवाब नहीं मिलता, जिससे...
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घरेलू कामगारों के प्रति तंग नजरिया- सुभाषिनी सहगल अली
किसी एक 'दिन' पर मचे सरकारी और गैर-सरकारी शोर में दूसरा उतना ही महत्वपूर्ण या शायद उससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण 'दिन' पूरी तरह से छिप जाता है। 16 जून को पड़ने वाले 'अंतरराष्ट्रीय घरेलू कामगार दिवस' के साथ ऐसा ही हुआ है। 'अंतरराष्ट्रीय योग दिवस' पर मच रहे कोलाहल ने देश भर मे अपनी मेहनत के बल पर संपूर्ण अर्थव्यवस्था के बहुत बड़े हिस्से को कायम रखने वाली करोड़ों गरीब...
More »चीन से आगे जाने का मतलब- मधुरेन्द्र सिन्हा
बीती सदी के नब्बे के दशक में जब जर्जर भारतीय अर्थव्यवस्था को तत्कालीन प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिंहराव के वित्त मंत्री ने अमरबूटी पिलाई थी, तो किसी को एहसास भी नहीं था कि यह दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में शुमार हो जाएगी। विदेशों में बने टीवी, फ्रिज को देखकर ललचाते हुए मध्यवर्ग ने सोचा भी नहीं था कि भारत ऐसे सामान के सबसे बड़े उत्पादकों में से एक बन जाएगा। यह...
More »देश के वे तीन 'करोड़पति' गांव, जिनके बैंकों में जमा हैं 9000 करोड़ रुपए
गांव का नाम सुनते ही किसानों, चौपालों, खेतों आदि की छवि मन में उभरने लगती है। सुविधाओं के लिए जूझते गांवों की तस्वीर भी सामने आती है। लेकिन हम जिन तीन गांवों की बात कर रहे हैं वे गांव एनआरआई के गांव हैं, जहां के परिवारों के पास पैसों की कोई कमी नहीं है। हालत ये है कि भुज से लगभग 15 किलोमीटर दूर बालाडिया गांव में कुल 1292 परिवार हैं...
More »किसान को उसका वेतन आयोग कब- योगेन्द्र यादव
किसान हमें ऐसे याद आता है, जैसे कोई दूर का गरीब रिश्तेदार. हम जानते हैं वह कहीं है, लेकिन मुलाकात कभी खुशी-गमी के मौके पर ही होती है. अंकल जी की मौत का रस्मी अफसोस तो कर लेते हैं, लेकिन यह नहीं पूछते कि तुम्हारी जिंदगी कैसे चल रही है. सवाल नहीं पूछते, चूंकि हम उत्तर नहीं सुनना चाहते. शहरों में रहनेवाले भारत की किसान से मुलाकात किसी बुरी खबर...
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