आज जिससे भी बात कीजिए, यही कहता है कि समाज में बहुत गिरावट आ गयी है. यह बात मानते सब हैं, पर करता कोई कुछ नहीं. लेकिन, लीक छोड़ चलनेवाले कुछ बिरले होते हैं, जो आलोचना भर से संतुष्ट नहीं होते और बदलाव के लिए कदम बढ़ा लेते हैं. ऐसी ही है बिहार की सुपुत्री साधना. उसने जो साधना शुरू की है, अगर वह एक आंदोलन की शक्ल ले ले,...
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कनहर में दफन होती समाजवाद की थीसिस- अभिषेक श्रीवास्तव
इस साल अक्षय तृतीया पर जब देशभर में लगन चढ़ा हुआ था, बारातें निकल रही थीं और हिंदी अखबारों के स्थानीय संस्करण हीरे-जवाहरात के विज्ञापनों से पटे पड़े थे, तब बनारस से सटे सोनभद्र के दो गांवों में पहले से तय दो शादियां टल गईं. फौजदार (पुत्र केशवराम, निवासी भीसुर) के बेटे का 22 अप्रैल को तिलक था. शादी अगले हफ्ते होनी थी. पड़ोस के गांव में 24 अप्रैल को...
More »बाबा साहेब का सपना - सतीश देशपांडे
हमारे समय की विडंबना है कि एक युग-व्यापी समाज चिंतक की भूमिका में डॉ बाबा साहेब आंबेडकर के ‘अच्छे दिन' अब आते लग रहे हैं। उनके एक सौ चौबीसवें जन्मदिन के अवसर पर हम उनकी बढ़ती प्रासंगिकता में यह सांत्वना ढूंढ़ सकते हैं कि हमारे पश्चिम-परस्त, ब्राह्मणवादी बुद्धिजीवी जगत में देर है अंधेर नहीं। आधी सदी की ‘रुकावट' के लिए खेद है, मगर देर-सवेर डॉक्टर साहेब को अपना मुनासिब स्थान...
More »भूमि अधिग्रहण पर अन्ना ने दी मोदी को बहस की चुनौती
पुणे। भूमि अधिग्रहण विधेयक को लेकर राजग सरकार के खिलाफ मोर्चा खोले अन्ना हजारे ने इस मुद्दे पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को खुली बहस की चुनौती दी है। उनका कहना था कि वह कैमरे पर विधेयक से जुड़े सभी विवादास्पद मुद्दों को लेकर पीएम से सीधी बातचीत के लिए तैयार हैं। अन्ना के अनुसार, "लोगों को यह खुली बहस देखने दें और सच्चाई से वाकिफ होने दें।" गांधीवादी नेता गुरुवार को...
More »गांधी और गोडसे- योगेन्द्र यादव
बीती 30 जनवरी को शहीद पार्क में भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव की मूर्ति के सामने खड़ा मैं शहीदों की विरासत के बारे में सोच रहा था। शहीदों की स्मृति अंगारे जैसी होती है, जो सुलगती है, सुलगाती भी है। वक्त के साथ इन अंगारों पर राख की परतें जमती जाती हैं। फिर ऐसा वक्त आता है कि ये अंगारे निरापद हो जाते हैं। ड्राइंग रूम की शोभा बढ़ाते हैं,...
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