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क्या 50 लाख साल बाद, जल संकट से होने वाले पलायन से फिर जूझ रही है दुनिया?

-डाउन टू अर्थ, दिल्ली के श्रम बाजारों में पिछले कुछ हफ्तों से भीड़ बढ़ने लगी है। अनौपचारिक कामगारों के ये बाजार आसपास के राज्यों, विशेष रूप से उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र के मौसम की स्थिति का पैमाना हैं। मानसून का यह मौसम अनिश्चितताओं से भरा है। दिल्ली के बाजारों में अनौपचारिक कामगारों की संख्या में वृद्धि भविष्य के सूखे का एक निश्चित संकेत है। कृषि के मौसम...

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विमुक्त-घुमंतू जनजातियों का आजादी दिवस और अखबारों का सन्नाटा!

-गांव सवेरा, अंग्रेजी के एक भी अखबार में डिनोटिफाइड ट्राइब्स के आजादी दिवस समारोह को लेकर कोई खबर नहीं है. अंग्रेजी के जिन अखबारों को हमारी टीम ने टटोला उनमें द हिंदू, द इंडियन एक्सप्रेस, द टाइम्स ऑफ इंडिया, द पायनियर, हिंदुस्तान टाइम्स अखबार शामिल रहे. वहीं हिंदी के अखबारों का भी यही हाल रहा.   कल 31 अगस्त को विमुक्त-घुमंतू जनजातियों या डिनोटिफाइड ट्राइब्स (डीएनटी) ने अपना 70वां आजादी दिवस मनाया. हिंदी...

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भारत के इन करोड़ों लोगों के लिए 31 अगस्त है आजादी का दिन!

-गांव सवेरा, देश 15 अगस्त को आजादी का जश्न मना चुका है वहीं देश की करीबन 15 करोड़ की आबादी आज दूसरा आजादी दिवस मना रही है. भारत की आजादी की तारीख 15 अगस्त आपके लिए उत्साहवर्धक हो सकती है लेकिन हमारे बीच कुछ ऐसी जनजातियां भी हैं जिनके लिये 31 अगस्त असली आजादी का दिन है, क्योंकि जब पूरा देश आजादी के जश्न में डूबा हुआ था तो ये लोग...

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बीजेपी के भव्य कार्यालय बन सकते हैं तो वादे अनुसार 10 हजार बेघर घुमंतू परिवारों के घर क्यों नहीं?

-गांव सवेरा, हरियाणा सरकार के सर्वे के अनुसार प्रदेश में 10 हजार ऐसे परिवार हैं जिनके पास मकान बनाने के लिए जमीन तक नहीं है. वहीं 2011 की जनगणना के मुताबिक देश में कुल बेघर लोगों की संख्या 10 लाख 30 हजार के करीब है, इनमें से अधिकतर बेघर लोग विमुक्त घुमंतू समुदाय से हैं. मकान बनाने के लिए जमीन न होने के कारण आजादी के सात दशक बाद भी डिनोटिफाइड...

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बात बोलेगी: बिगड़ा हुआ है रंग जहान-ए-ख़राब का…

-जनपथ, मौसम पर ये तोहमत लगती है कि एक-सा नहीं रहता। माशूकाएं अपने आशिक पर ये संदेह करती रहती हैं कि ‘मौसम की तरह तुम भी बदल तो न जाओगे’? मौसम अगर थिर हो जाए तो लोगों को फूटी आँख नहीं सुहाता। क्या हो अगर बारिश होती ही रहे, धूप निकली ही रहे और जाड़ा बना ही रहे? लोग ऊब जाते हैं। उकता जाते हैं। मौसम के थिर हो जाने या...

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