अगर आयकर चुकाना आर्थिक बेहतरी का संकेत हो तो फिर अच्छी खबर यह है कि देश के ग्रामीण इलाके में महिलाओं की प्रधानी वाले तकरीबन 4 प्रतिशत परिवार सालाना आयकर चुकाते हैं. लेकिन इस खबर के आधार पर कोई भी राय बनाने से पहले तनिक रुककर नीचे लिखे तथ्यों पर एक नजर डालिए क्योंकि सिक्के का दूसरा पहलू भी है. जैसा कि सामाजिक-आर्थिक एवं जाति जनगणना(एसईसीसी 2011) के तथ्यों से जाहिर है...
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राजनीतिक पार्टियों में आंतरिक लोकतंत्र और वित्तीय पारदर्शिता बेहद जरूरी - जगदीप छोकर
चुनाव आते ही राजनीतिक पार्टियों द्वारा मतदाताओं को लुभाने की कोशिशें तेज हो जाती हैं. कोई पैसे बांट कर लुभाता है, कोई शराब बांट कर लुभाता है, तो कोई उपहार बांट कर. करोड़ों रुपये पकड़े जाते हैं. हजारों बोतल शराब पकड़ी जाती है. जाहिर है, जिन पैसों से यह सब होता है, वह पैसा सही तो नहीं ही होगा. जो पैसा सही नहीं है, वह कालाधन की श्रेणी में अपने...
More »मिलावटी दूध की बहती गंगा - भवदीप कांग
शुरुआत इसी विरोधाभासी तथ्य से करें कि भारत दुनिया का सबसे बड़ा दुग्ध उत्पादक देश है! पिछले पंद्रह वर्षों में भारत में प्रति व्यक्ति दूध उपलब्धता बढ़कर लगभग दोगुनी हो गई है। अब यह 322 ग्राम प्रतिदिन है। ऐसे में सवाल उठना स्वाभाविक है कि जब भारत में दूध की मांग व आपूर्ति का तंत्र अच्छी तरह विकसित हो चुका है तो हम मिलावटी दूध पीने को मजबूर क्यों हैं?...
More »जरूरी है किसानों की आय बढ़ाना --- देविन्दर शर्मा
भारत के 17 राज्यों में खेती से एक किसान की औसत आय 20 हजार रुपये सालाना है. इसमें उत्पादन का वह अंश भी शामिल है जिसे वह पारिवारिक उपभोग के लिए रखता है. दूसरे शब्दों में, इन राज्यों में किसान की औसत मासिक आय महज 1,666 रुपये है. जी हां, आपने सही पढ़ा. महज 1,666 रुपये. इस तस्वीर में आप खुद को रख कर देखें. अगर आप किसान होते और...
More »इंडिया नहीं, भारत का बजट-- अनुपम त्रिवेदी
मोदी सरकार के तीसरे बजट पर मध्यम-वर्ग की प्रतिक्रिया तीखी रही है. न आयकर छूट की सीमा में बढ़ोत्तरी हुई, न बढ़ते दामों से राहत मिली, बल्कि सेवाकर में बढ़ोत्तरी ने एनडीए सरकार के सबसे बड़े समर्थक मिडिल क्लास को जैसे विपक्षी दलों के साथ ले जाकर खड़ा कर दिया है. महंगी कारें, महंगा सोना, महंगे होटल और कर्मचारी भविष्य निधि (इपीएफ) की निकासी पर लगाये गये कर से चमकती...
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