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"कृषि विधेयकों से किसानी पर हो जाएगा कॉरपोरेटों का कब्जा," पंजाब के आंदोलनरत किसान

-कारवां, 14 सितंबर को जब पंजाब और हरियाणा में किसान संगठन विरोध कर रहे थे केंद्र सरकार ने संसद में कृषि से संबंधित तीन विधेयक पेश किए. इन विधेयकों ने जून में घोषित किए गए तीन अध्यादेशों, किसान उत्पादन व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) अध्यादेश (2020), किसानों के (सशक्तिकरण और संरक्षण) के लिए मूल्य आश्वासन और कृषि सेवा समझौता अध्यादेश (2020) और आवश्यक वस्तु (संशोधन) अध्यादेश (2020) को प्रतिस्थापित कर...

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एक्शनएड सर्वे: लॉकडाउन लागू होने के बाद तीन-चौथाई से अधिक श्रमिक अपनी आजीविका से हाथ धो बैठे

एक्शनएड एसोसिएशन (एएए) द्वारा मई 2020 के आखिर तक तीसरे चरण के लॉकडाउन में राष्ट्रीय स्तर पर अनौपचारिक अर्थव्यवस्था पर निर्भर श्रमिकों के बीच सर्वेक्षण (14 मई और 22 मई, 2020 के बीच) किया है, जिसमें महामारी के दौरान प्रवासी श्रमिकों सहित अनौपचारिक श्रमिकों के जीवन और आजीविका में आए बदलावों और प्रभावों, उनके द्वारा अनुभव की गई रोजी-रोटी की अनिश्चितता और उससे निपटने के लिए उनके संघर्षों को दर्ज किया...

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एकाध को छोड़, ज्यादातर राज्यों ने इस लॉकडाउन में जरूरतमंद दिव्यांगजनों को उनके हाल पर छोड़ दिया

कोविड-19 महामारी के इस दौर में दिल्ली के एक गैर-लाभकारी संगठन – नेशनल सेंटर फॉर प्रमोशन ऑफ एंप्लॉयमेंट फॉर डिस्बेल्ड पीपल (एनसीपीईडीपी) द्वारा हाल ही में किए गए एक सर्वे से पता चलता है कि देश में दिव्यांगजन इस महामारी से बुरी तरह प्रभावित हुए हैं.   एनसीपीईडीपी की रिपोर्ट के अनुसार विशेष रूप से आर्थिक रूप से वंचित वर्गों के दिव्यांगजन, लॉकडाउन के दौरान गंभीर कठिनाइयों से गुजर रहे थे. भोजन...

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प्रवासी मजदूर : नए दौर के नए अछूत

ग्रामीण क्षेत्रों में रिपोर्टिंग करते समय मुझे बहुत से ऐसे प्रवासी मजदूर मिले हैं, जो अक्सर कहते हैं, “परेशान होकर हम शहरों में आए हैं। हम गांव में थोपी गई जाति व्यवस्था के कारण अपना घर छोड़ने को मजबूर हुए हैं।” ऐसा नहीं है कि केवल गांव ही “महान भारतीय जाति व्यवस्था” का पालन करते हैं, लेकिन इस व्यवस्था से सबसे अधिक पीड़ित वे गरीब हैं जो जाति के सबसे निचले...

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क्यों यह सबसे मुनासिब वक्त है एक राष्ट्रीय सरकार के गठन का

-न्यूजलॉन्ड्री, सरकार बनाने के लिए वर्तमान में बहुमत का क्या मतलब है. पहला कि सत्ताधारी दल को कभी भी कुल आबादी का बहुमत नहीं होता है. चुनाव में कुल मतदान में सबसे ज्यादा मत हासिल करने के कारण उसे बहुमत मान लिया जाता है. संसदीय लोकतंत्र में बहुमत एक विज्ञापन की तरह होता है. वास्तविकता से उसका बहुत दूर का रिश्ता होता है. मसलन 1952 के पहले चुनाव में केवल 17,32,13,635 मतदाता...

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