दिल्ली में वायु प्रदूषण को लेकर पिछले कुछ बरसों से बराबर अध्ययन आते रहे। सबमें चेतावनी का ही स्वर था। पर ये चेतावनियां अनसुनी की जाती रहीं, या उन पर पर्याप्त गौर नहीं किया गया। अब दिल्ली के वायु प्रदूषण पर काबू पाने की कवायद तेज हो गई दिखती है। देर से ही सही, दुरुस्त आयद। पर यह अंदेशा भी पैदा हुआ है कि हड़बड़ी में कहीं अव्यावहारिक कदम तो...
More »SEARCH RESULT
चेन्नई बाढ़ : एक मानव निर्मित त्रासदी
चेन्नई की बाढ़ जलवायु परिवर्तन के गंभीर परिणामों का एक भयावह उदाहरण तो है ही, इससे हुई तबाही ने मानव समाज की खतरनाक गलतियों के नतीजों को भी रेखांकित किया है. हाल के वर्षों में उत्तराखंड, कश्मीर समेत देश के विभिन्न इलाकों में बाढ़ की त्रासदी का कहर लगातार बढ़ा है. तेज शहरीकरण और विकास की आपाधापी में सरकार और समाज प्राकृतिक तंत्रों को बेतहाशा बरबाद कर रहे हैं. नदियां...
More »अन्न की बर्बादी और भूख-- रविशंकर
हर साल देश में करीब पचास हजार करोड़ रुपए का अनाज बर्बाद हो जाता है। एक ऐसे देश में जहां करोड़ों की आबादी को दो जून ठीक से खाना नहीं नसीब होता, वहां इतनी मात्रा में अनाजों की बर्बादी किस तरह की कहानी कहती है? इसकी पड़ताल कर रहे हैं रविशंकर। यह विडंबना नहीं, उसकी पराकाष्ठा है कि सरकार किसानों से खरीदे गए अनाज को खुले में छोड़कर अपना कर्तव्य पूरा...
More »खस्ताहाल बैंकों के साथ कैसे होगा विकास - धर्मेंद्रपाल सिंह
अब तो वित्त मंत्री अरुण जेटली ने भी मान लिया है कि सार्वजनिक बैंकों की हालत बेहद खस्ता है। इस साल मार्च तक कर्जदारों के पास देश के सभी बैंकों का 30.9 खरब रुपया फंसा पड़ा था, जिसमें अकेले सार्वजनिक बैंकों के 26.7 खरब रुपए हैं। उनका नॉन परफॉर्मिंग एसेट (एनपीए) खतरनाक सीमा पर खड़ा है। खस्ताहाल बैंकों में प्राण फूंकने के लिए कुछ समय पहले वित्त मंत्री ने चार...
More »किसान आत्महत्या का अधूरा सच- देविन्दर शर्मा
गुलाबी तस्वीर पेश करने की तमाम कोशिशों के बावजूद राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड्स ब्यूरो (एनसीआरबी) के किसान आत्महत्या संबंधी 2014 के आंकड़े कृषि के स्याह पक्ष को ही सामने लाते हैं। वर्ष 2014 में 12,360 किसानों की आत्महत्या का सीधा अर्थ है कि हर 42 मिनट में देश में एक किसान ने आत्महत्या की। हालांकि एनसीआरबी ने किसानों की आत्महत्या के आंकड़े को दो श्रेणियों-किसानों एवं कृषि मजदूरों, में बांटने का साहसिक...
More »