हमारा समाज बेशक आज मार्डन हो गया है। समाज के लोग यही कहते है कि हमने आज तक बच्चों में कोई फर्क नहीं किया और हमारे लिए तो बेटा-बेटी एक समान हैं। मगर, वास्तविकता कुछ और ही होती है। लड़कों के मामले में हम बहुत खुले विचार रखते हैं। मगर, लड़की की बात आते ही कहीं न कहीं हमारी सोच थोड़ी सिकुड़ जाती है, इसी के चलते सृष्टि को आगे...
More »SEARCH RESULT
आसान नहीं आरक्षण की राह-- प्नो. फैजान मुस्तफा
पिछले दिनों आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों को 10 प्रतिशत आरक्षण प्रदान करने हेतु संसद के दोनों सदनों में पारित 124वें संविधान संशोधन विधेयक के द्वारा संविधान के अनुच्छेद 16 में एक नया उपबंध जोड़ा गया है, जो राज्यों को ऐसे प्रावधान करने में समर्थ बनाता है. इस वजह से केंद्र सरकार को यह भरोसा है कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा इस आरक्षण को असंवैधानिक करार देने की संभावना नहीं होगी...
More »क्या कहती है सबरीमाला की राजनीति- एस, श्रीनिवासन
आखिरकार नए साल में 10 से 50 साल की उम्र की महिलाओं ने सबरीमाला में प्रवेश करके अपने भगवान अयप्पा की पूजा-अर्चना करने में कामयाबी हासिल कर ली। उन्हें यह सफलता सुप्रीम कोर्ट के आदेश के तीन महीने बाद मिल पाई है। ऐसा लगता है कि केरल की वाम मोर्चा सरकार औरतों को इस मंदिर में प्रवेश दिलाने के लिए माकूल वक्त का इंतजार कर रही थी। जिन दो महिलाओं...
More »लैंगिक भेदभाव के खिलाफ खड़ा साल--
साल 2018 भारत की महिलाओं के लिए मील का पत्थर साबित हुआ। अधिकारों के नजरिए से देखें, तो उन्होंने फिर से अपना सही मुकाम हासिल किया। यह वर्ष देश की शीर्ष अदालत द्वारा महिलाओं के पक्ष में ऐतिहासिक फैसले सुनाने का भी गवाह बना। सुप्रीम कोर्ट ने धारा 377 को रद्द किया, महिलाओं को सबरीमाला मंदिर में पूजा-अर्चना के सांविधानिक अधिकार दिए, ‘तीन तलाक' खत्म किया, एडल्टरी यानी व्यभिचार को...
More »एक प्रगतिशील फैसले के बाद-- एस श्रीनिवासन
देश का सबसे शिक्षित सूबा केरल इन दिनों उबल रहा है। विवाद सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले को लेकर है, जिसमें सबरीमाला के अयप्पा मंदिर में सभी उम्र की महिलाओं को पूजा-अर्चना की अनुमति दी गई है। इस फैसले का सांविधानिक पहलू भी है और सांस्कृतिक भी। लेकिन चुनावी मौसम के करीब होने के कारण इस मसले को विशुद्ध राजनीति ने हथिया लिया है। कानूनी लिहाज से यह विवाद एक व्यक्ति...
More »