विश्व की जनसंख्या जिस तेजी से बढ़ी है, उस अनुपात में खाद्य उत्पादन नहीं बढ़ा है. जंगलों के कटने और बेहिसाब औद्योगिकीकरण से धरती की जलवायु पर बुरा असर पड़ा है. आइसलैंड में हुए एक सम्मेलन में इन्हीं बिंदुओं पर विचार किया गया. पिछले दिनों (26-29 मई) को आइसलैंड की राजधानी रेईकजाविक में ‘मृदा कार्बन' पर एक सम्मेलन आयोजित किया गया. यह सम्मेलन कई मायनों में खास था. इसे आयोजित करवाने...
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वे आदिवासियों के हितैषी नहीं- विनोद कुमार
तरीके से फैलाई गई है कि माओवादी आदिवासियों के रहनुमा हैं। जल, जंगल और जमीन पर आदिवासियों के हक की लड़ाई लड़ रहे हैं। इसी वजह से मेधा पाटकर, अरुंधति राय, स्वामी अग्निवेश जैसे सामाजिक कार्यकर्ता जब-तब माओवादियों के पक्ष में खड़े हो जाते हैं। लेकिन यह भ्रम है। यह इत्तिफाक है कि अपने देश का जो वनक्षेत्र है वही जनजातीय क्षेत्र भी है, और माओवादी छापामार युद्ध की अपनी...
More »महंगाई के फिर लौटने का खतरा
नई दिल्ली [जागरण ब्यूरो]। हाल के कुछ हफ्तों के दौरान थोक उत्पादों की महंगाई दर में कमी का ढिंढोरा पीट रही सरकार को रिजर्व बैंक ने आइना दिखा दिया है। आरबीआइ ने कहा है कि महंगाई पूरी तरह से काबू में नहीं आई है। यह अगले दो से तीन महीनों में फिर बेकाबू हो सकती है। खास तौर पर खाद्य उत्पादों की महंगाई दर अभी भी सामान्य से काफी ज्यादा...
More »श्रम में खोता बचपन
बाल श्रम हमारे समय की एक दुखद सच्चई है. तरक्की के तमाम दावों के बावजूद आज हम उद्योग-धंधों से लेकर घर के भीतर तक पूरी दुनिया में किसी न किसी रूप में बाल श्रमिकों को देख सकते हैं. इसकी रोकथाम के लिए बेशक कई कानूनी प्रावधान किये गये हों, लेकिन पिछड़े क्या विकसित कहे जाने वाले समाजों तक में लाखों बच्चों का बचपन पेट की भूख मिटाने में दफन हो जाता है. वर्ल्ड...
More »माओवाद को लेकर मतिभ्रम- विनोद कुमार
जनसत्ता 31 मई, 2013: झारखंड, छत्तीसगढ़ सहित देश के वनक्षेत्र वाले इलाकों में माओवादी गतिविधियां बढ़ती जा रही हैं। हाल में झारखंड से सटे छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की परिवर्तन रैली पर हमला कर माओवादियों ने तीन दर्जन लोगों को मार डाला। इस हमले में मारे जाने वाले कुछ सुरक्षाकर्मियों सहित कांग्रेसी नेता और कार्यकर्ता हैं। आजादी के साढ़े छह दशक बाद भी कांग्रेस और भाजपा जैसी राष्ट्रीय पार्टियां अगर ‘विकास...
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