-द प्रिंट, मार्च-अप्रैल में विधान सभा चुनावों के बाद से निरंतर वृद्धि के चलते, राष्ट्रीय राजधानी समेत देश के कई हिस्सों में, पेट्रोल के दाम 100 रुपए प्रति लीटर के निशान को पार कर गए. लेकिन, अगर क़ीमतें बढ़ रही हैं तो क्या ईंधन की खपत पर इसका असर नहीं होना चाहिए? वित्त वर्ष 1999-2000 और 2019-20 के बीच, 20 वर्षों के अधिकारिक आंकड़ों पर नज़र डालने पर पता चलता है, कि पेट्रोल...
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बेरोज़गार भारत एक पड़ताल: केंद्र और राज्य सरकारों के 60 लाख से अधिक स्वीकृत पद खाली
-न्यूजक्लिक, मोदी सरकार के कार्यकाल में जहाँ एक और बेरोजगारी इतनी अधिक हैं, कोई नई नौकरिया नहीं हैं, वहीं दूसरी और जो सरकारी पद पहले से स्वीकृत हैं उन पर भी नियुक्ति नहीं हो रही हैं। केंद्र तथा राज्य सरकारों के विभिन्न विभागों के आंकड़ों पर किये गए अध्ययन से पता चलता है कि रिक्त पदों कि संख्या 60 लाख से अधिक है। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेतृत्व वाली नरेंद्र मोदी सरकार और राज्य सरकारों...
More »केंद्र ने कारवां के ट्विटर अकाउंट को ब्लॉक करने से संबंधित आरटीआई खारिज
-कारवां, इस साल जनवरी में कारवां के ट्विटर अकाउंट को ब्लॉक करने के इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के आदेश के बारे में मंत्रालय से सूचना के अधिकार के तहत जानकारी मांगी गई थी. मंत्रालय ने इसे देने से इनकार किया है. मंत्रालय ने सार्वजनिक डोमेन पर सूचना जारी करने पर भारत की सुरक्षा, संप्रभुता और अखंडता के लिए खतरे का हवाला दिया है. मंत्रालय के पहले अपीलीय प्राधिकारी ने सूचना ब्लॉक...
More »क्या विश्वविद्यालय विद्यार्थियों के जीवन में अपनी निर्धारित भूमिका निभाने में विफल हो रहे हैं
-द वायर, शाम का समय है. आदतन मोबाइल उठाकर इंटरनेट डाटा ‘ऑन’ करता हूं. ‘वॉट्सऐप’ के ‘स्टेटस’ देखता हूं. ‘वॉट्सऐप स्टेटस’ को मैं यूं ही देखकर छोड़ देने वाली चीज़ नहीं मान पाता. मुझे हमेशा लगता है कि विद्यार्थियों और नौजवानों के प्रसंग में तो उसकी कभी भी उपेक्षा नहीं की जानी चाहिए. इस बात को तो कोई मनोवैज्ञानिक शोध ही स्पष्ट कर सकता है कि वह कौन-सी प्रक्रिया है, जिसके कारण...
More »शेयर बाजार एक आईना है- 40 सालों में कितना बदला भारतीय बिजनेस और इसमें क्या कमी है
-द प्रिंट, चालीस साल पहले सबसे बड़े 30 व्यावसायिक ‘घरानों’ की जो कंपनियां शेयर बाज़ार में सूचीबद्ध थीं उनका कुल मूल्य 6,200 करोड़ रुपये था. उस समय सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) इससे 28 गुना बड़ा (1.75 लाख करोड़ रु. के बराबर) था. ज़्यादातर कंपनियां जूट, चाय, सीमेंट, चीनी, इस्पात के उत्पाद और कपड़े जैसे ‘प्राथमिक’ उत्पादों का उत्पादन करती थीं. उसके बाद से नाटकीय बदलाव हुए हैं. आज नेशनल स्टॉक एक्सचेंज...
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