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शिक्षा के अवसर और दिव्यांग जन -- क्या कहती है 2011 की जनगणना

आम आबादी की तुलना में दिव्यांग व्यक्तियों को शिक्षा के अवसर कम हासिल हैं. इस बात के संकेत 2011 की जनगणना के आंकड़ों से मिलते हैं.   इन आंकड़ों के मुताबिक भारत में समझ के साथ लिख और पढ़ पा सकने वाले दिव्यांग लोगों की तादाद केवल 54.7 फीसद है. (इससे सबंधित सारणी के लिए यहां क्लिक करें).   2011 की जनगणना के मुताबिक देश में दिव्यांग लोगों की तादाद 2.68 करोड़ है. इनमें 1.22...

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एक ही प्लेटफॉर्म के माध्यम से होगा सभी बिलों का पेमेंट

भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर रघुराम राजन ने कहा है कि जल्द ही देशभर में भारत बिल पेमेंट सिस्टम लॉन्च किया जायेगा. साथ ही टीआरइडीएस यानी ट्रेड रिसिवेबल्स डिस्काउंट सिस्टम को भी मौजूदा वित्तीय वर्ष में लॉन्च किया जा सकता है. दूसरी ओर ‘पीडब्ल्यूसी' द्वारा जारी एक रिपोर्ट में यह अनुमान लगाया गया है कि एडवांस पेमेंट इकोसिस्टम की बदौलत भारत जैसे उभरते हुए अर्थव्यवस्थावाले देश में भुगतान की प्रक्रिया...

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राजस्थान में पेंशन योजना का सरकारी खेल !

राजस्थान में राष्ट्रीय सामाजिक सहायता कार्यक्रम(एनएसएपी) के तहत दिए जा रहे पेंशन के बारे में कुछ चौंकाने वाले तथ्य सामने आये हैं. ये तथ्य हाल के एक सरकारी रिपोर्ट के निष्कर्षों को लेकर आशंका जगाते हैं.   नागरिक संगठन सूचना एवं रोजगार अभियान(एसआर अभियान) के मुताबिक प्रदेश में एनएसएपी के तहत पेंशन के रुप में सहायता राशि पाने वाले 2.95 लाख लाभार्थियों के नाम सूची से हटा दिए गए हैं और उन्हें...

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दलित की शादी में खाना खाया तो गांव से कर दिया बहिष्कृत

बालाघाट। ब्यूरो। वारासिवनी की ग्राम पंचायत नांदगांव में एक समाज विशेष के लोगों द्वारा समिति बनाकर फरमान सुनाते हुए एससी समाज के लोगों से किसी भी प्रकार का संबंध रखने वालों को गांव से बहिष्कृत किया जा रहा है। पहले सिर्फ एससी समाज के लोग बहिष्कृत होते थे लेकिन अब अन्य समाज के लोगों को भी बहिष्कृत किया जा रहा है। बहिष्कृत होने पर दो ग्रामीणों ने अजाक्स थाने में...

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सामाजिक न्याय का अधूरा सपना-- प्रमोद मीणा

नौवें दशक के बाद से भारतीय राजनीति में दलित दलों और दलित नेताओं की स्वतंत्र पहचान बनी है और उत्तर प्रदेश जैसे कुछ राज्यों में उन्हें सत्ता में हिस्सेदारी का सीधा मौका भी मिला है। पर अब इस प्रश्न पर विचार करने की जरूरत है कि इस पूरे राजनीतिक परिदृश्य को हम किस तरह देख सकते हैं। क्या इसे स्वातंत्र्योत्तर भारत में लोकतंत्र की एक महान उपलब्धि के रूप में...

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