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गांवों की ओर भी देखें हुक्मरान- देविन्दर शर्मा

किसी गांव की एक महिला बकरी खरीदना चाहती है। वह आर्थिक तौर पर अपने पैरों पर खड़े होना चाहती है। यह जानते हुए कि उसे मदद मिल सकती है, वह इस काम के लिए लघु वित्तीय संस्थान (एमएफआई) में संपर्क करती है। उसे लगभग 7,000 रुपए की जरूरत है। एक स्वयं सहायता समूह के जरिए काम कर रही एमएफआई उसे 24 प्रतिशत की दर पर ब्याज के हिसाब से यह...

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लगन: जलती है हेडलाइट तो पढ़ता है भोला

भागलपुर: भागलपुर शहर के सराय चौक के समीप सड़क किनारे नाले के ढक्कन पर हर शाम छह बजे एक बच्च पिछले कई वर्षो से कॉपी और किताब लेकर पहुंचता है. वह भी इस उम्मीद के साथ कि गाड़ियां लगातार चलती रहेंगी और वह उसकी हेडलाइट की रोशनी में पढ़ाई कर लेगा. हेडलाइट का जो भी साथ मिलता है, उसमें वह रात नौ बजे तक पढ़ाई करता रहता है. मिट्टी की दीवार...

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खाली हैं अन्न उपजाने वाले हाथ- देविन्दर शर्मा

कृषि मोर्चे पर एक नया संकट आ गया है। सर्वोच्च न्यायालय में केंद्र सरकार द्वारा किसानों को फसल उत्पादन की कुल लागत पर 50 प्रतिशत लाभ देने में असमर्थता जताने के बाद तलवारें खिंच गई हैं। मार्च के मध्य से ही कई किसान संगठन इस मुद्दे पर केंद्र सरकार का विरोध कर रहे हैं। उन्हें लग रहा है कि उनके साथ विश्वासघात हुआ है। वाकई लोकसभा चुनाव के दौरान ही...

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पानी में पैसा: 537 करोड़ की योजना, 100 करोड़ खर्च, नतीजा 0

टना: गरमी में पेय जल संकट से शहरवासियों को निजात दिलाने के लिए 2010 में 420 करोड़ रुपये की जलापूर्ति योजना बनी. योजना पूरी नहीं हुई. 2012 में योजना लागत बढ़ कर 537 करोड़ हो गयी. तीन वर्ष बाद भी स्थिति वैसी ही है. शहरवासी फिर इस बार गरमी में जल संकट से जूङोंगे. वजह निगम क्षेत्र की 14 बोरिंग ठप है और नयी जलापूर्ति योजना अधर में है. निगम...

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उदारीकरण में पिसती ग्रामीण अर्थव्यवस्था- सुषमा वर्मा

विश्व बैंक की प्रबंध निदेशक क्रिस्टीना लेगार्ड ने हाल ही में रहस्योद्घाटन किया है कि भारत के अरबपतियों की दौलत पिछले 15 बरस में बढ़कर 12 गुना हो गई है। गौरतलब है कि यह वही दौर है जब भारत में आर्थिक उदारीकरण की शुरुआत हुए चंद साल ही हुए थे। उदारीकरण के दो दशक बाद शहरी और ग्रामीण अर्थव्यवस्था के बीच का फासला लगातार बढ़ता ही नहीं जा रहा बल्कि...

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