संसार की सच्चाइयों के परे, क्या कहीं प्रचार-प्रसार की कोई सीमा भी है? क्या सभी चीजें उनकी वास्तविकताओं में नहीं, वरन उनकी प्रस्तुति में ही परखी जा सकती हैं? क्या सत्य स्व-विज्ञापन के वाष्प से सृजित एक मरीचिका मात्र है? या कि यदि विज्ञापन अपने दावे के अतिरेक की वजह से वास्तविकता से बहुत विलग हो जाये, तो वह स्व-विनाशक भी हो उठता है? हमारी वर्तमान सरकार प्रचार की जिस...
More »SEARCH RESULT
मोदी सरकार के तीन साल-- योगेन्द्र यादव
नरेंद्र मोदी सरकार के तीन साल के तीन बुनियादी सच हैं. इनमें से किसी भी सच से मुंह चुराना यानी आज हमारे देश की राजनीति से मुंह चुराना है. पहला सच है: नरेंद्र मोदी आज पूरे देश में लोकप्रिय प्रधानमंत्री हैं. दूसरा सच है: नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता उनके कामों और उपलब्धियों के कारण नहीं है, बल्कि उनकी छवि पर आधारित है. तीसरा सच है: मोदी की छवि कुछ तो...
More »आबादी और रोजगार की कशमकश -- मोंटेक सिंह अहलूवालिया
नौकरियों के सृजन की चुनौती पूरी दुनिया में राजनीति के केंद्र में है, और भारत भी इससे अछूता नहीं है। हालांकि, भारत में इस समस्या के पैमाने को आंकना कोई आसान काम नहीं है। हाल ही में जारी साल 2011-12 के नेशनल सैंपल सर्वे (एनएसएस) के आंकड़े बताते हैं कि देश की कुल श्रम-शक्ति के बरक्स बेरोजगारी दर महज 2.2 फीसदी थी, जो काफी मामूली है। इस लिहाज से अन्य...
More »मिल्क डे पर विशेषः कहीं आप दूध के रूप में जहर तो नहीं पी रहे?
आज वर्ल्ड मिल्क डे है. दुनिया के कई देशों में यह दिवस मनाया जा रहा है. दरअसल, दूध को पूर्ण आहार माना गया है. दूध में हर वो तत्व पाया जाता है, जिसकी इनसान को जरूरत होती है. इसलिए संयुक्त राष्ट्र की संस्था फूड एंड एग्रीकल्चर आॅर्गेनाइजेशन ने भी इसके महत्व को समझा और 1 जून, 2001 को विश्व दुग्ध दिवस (वर्ल्ड मिल्क डे) के रूप में मनाने की घोषणा...
More »एसी वाली कॉरपोरेट लाइफ छोड़ बनी किसान-- रचना प्रियदर्शिनी
तेजी से औद्योगिकीकरण की ओर बढ़ते इस मशीनी युग में जहां गांवों की अधिकतर आबादी बेहतर जीवन और सुख-सुविधाओं की तलाश में शहरों की ओर पलायन कर रही है, वहीं एक बेटी ऐसी भी है, जिसने कॉरपोरेट लाइफ की अच्छी-खासी जॉब को ठुकरा कर गांव में खेती करने के लिए वापस लौट आयी. इस बेटी का नाम है-अंकिता कुमावत. जानते हैं अंकिता के इस निर्णय की आखिर वजह क्या ...
More »