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पानी के प्रबंधन में बुनियादी बदलाव की दरकार, बने नेशनल वाटर कमीशन-- मिहिर शाह समिति

आजादी के बाद से अबतक बड़े और मंझोले आकार की सिंचाई परियोजनाओं में 4 लाख करोड़ रुपये खर्च हुए हैं लेकिन ज्यादातर किसानों के लिए अब भी सिंचाई का पानी मुहाल है.  सूखे की मार झेलती देश की खेती से जुड़ी इस तल्ख सचाई की तरफ ध्यान दिलाया गया है पानी का प्रबंधन सुधारने के मसले पर तैयार की गई एक रिपोर्ट में. रिपोर्ट केंद्रीय जल आयोग(सीड्ब्ल्यूसी) और केंद्रीय भूजल बोर्ड के कामकाज...

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कैलेंडर पर गांधी के होने का अर्थ-- विश्वनाथ सचदेव

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भाजपा के सबसे बड़े नेता हैं. और मोदी-समर्थकों की मानें, तो देश के सबसे बड़े नेता हैं. इसमें संदेह नहीं कि पिछले आम चुनावों में भाजपा की अभूतपूर्व सफलता का श्रेय उन्हें ही जाता है. अब माना यही जा रहा है कि मंत्रिमंडल के नाम पर लिये जानेवाले सारे बड़े निर्णय प्रधानमंत्री और उनका कार्यालय ही लेता है. यह स्थिति मंत्रिमंडल के सामूहिक उत्तरदायित्व वाली हमारी जनतांत्रिक...

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आचार संहिता की प्रासंगिकता -- अनुपम त्रिवेदी

4 जनवरी को 5 राज्यों में चुनाव की अधिसूचना के साथ ही चुनाव आचार संहिता लागू हो गयी है. नियमानुसार राजनीतिक दलों, प्रत्याशियों और सरकारी महकमें से इस दौरान आदर्श आचार यानी ‘मॉडल कंडक्ट' की अपेक्षा की जाती है और नहीं मानने पर सजा का प्रावधान है. भारत में आचार संहिता के प्रयोग का आरंभ केरल में हुआ, जब वहां 1960 के विधानसभा चुनावों में चुनाव परिचालन के लिए राजनीतिक...

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शराब मौलिक अधिकार है या नहीं, यह रहा जवाब

कोच्चि। पिछली सरकार द्वारा अपनाई गई शराब नीति को बरकरार रखते हुए केरल उच्च न्यायालय ने फैसला दिया है कि शराब की खपत मौलिक अधिकार नहीं है। हाईकोर्ट की खंडपीठ ने हाल ही में एक रिट याचिका पर यह फैसला दिया है।   अनूप एमएस ने शराब की नीति को चुनौती देते हुए इस याचिका को दायर किया था। इसके लिए उन्होंने आधार दिया था कि आबकारी अधिनियम में ऐसा कोई प्रावधान...

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लोकतंत्र में भय ! -- रविभूषण

अमेरिकी राष्ट्रपति बराक आेबामा ने पिछले सप्ताह अपने विदाई-भाषण में लोकतंत्र को लेकर जो गहरी चिंताएं व्यक्त की हैं, उन पर हम सब का ध्यान देना अधिक आवश्यक है. संयुक्त राज्य अमेरिका और भारत को दो प्रमुख लोकतांत्रिक देश माना जाता है. भारत में लोकतंत्र के तीन प्रमुख स्तंभ- विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका आज किस हालत में हैं? एडमंड बर्क (1729-1797) ने 1787 में एक संसदीय बहस में जिस 'प्रेस'...

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