जुलाई 2011 को सुप्रीम कोर्ट के माननीय न्यायमूर्ति सेवानिवृत्त होते बी. सुदर्शन रेड्डी और सुरेन्दर सिंह निज्जर की पीठ ने ऐतिहासिक फैसला देते हुए छत्तीसगढ़ शासन के उन आदेशों को निरस्त कर दिया है, जिनके अनुसार बस्तर में नक्सलियों से निपटने के लिए विशेष पुलिस कर्मी (एसपीओ) को भरती कर मजबूर, गरीब और लगभग अशिक्षित आदिवासी युवकों के हाथों में कथित आत्मसुरक्षा के नाम पर बंदूकें थमा दी गई थीं....
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बालश्रम का कलंक- निशिकांत ठाकुर
आजादी के छह दशक बीत जाने के बाद भी जो बातें भारत के लिए शर्म की बड़ी वजह बनी हुईं हैं बालश्रम को अगर उनमें सबसे ऊपर रखा जाए तो गलत नहीं होगा। आज भी हमारे देश में करोड़ों बच्चे खेलने-कूदने और पढ़ने-लिखने की उम्र में खेतों से लेकर होटलों और खतरनाक उद्योगों तक में अत्यंत विकट परिस्थितियों में जीतोड़ मेहनत करने के लिए मजबूर हैं। बेफिक्री की उम्र में ही उनके ऊपर इतनी...
More »सरकारी यानी घटिया!- विनोद वर्मा(बीबीसी)
तमिलनाडु के एक पिछड़े ज़िले इरोड के ज़िलाधीश यानी कलेक्टर डॉ आर आनंदकुमार ने अपनी छह साल की बेटी को एक सरकारी स्कूल में भर्ती करवाया है. जब वे इस स्कूल में अपनी बच्ची के दाखिले के लिए पहुँचे तो दूसरे माँ-बाप की तरह कतार में खड़े हुए. दिल्ली के एक अख़बार में इस ख़बर का प्रकाशित होना ही साबित करता है कि यह कुछ असामान्य सी बात है. यक़ीनन ज़िलाधीश को उनके...
More »बंजर जमीन में बायो डीजल की खेती
पटना : सरसरी तौर पर आपको यह सचमुच विसंगतियों से भरा मामला दिखेगा. 20 साल की उम्र में कंपनी का गठन एक्सएलआरआइ से एमबीए के बाद गांव व खेती में जुटना. निश्चित भविष्य की गारंटी वाली नौकरी का ऑफर ठुकरा कर बिहार में बदलाव लाने की पथरीली डगर का चयन. जिस बंजर जमीन पर खेती भी मुश्किल हो, वहां डीजल पैदा करने की जिद. डीजल भी उस पेड़ से निकालने...
More »बदल रहे हैं, गांव, देहात और जंगल- हरिवंश
फ़रवरी 2008 में चतरा के नक्सल दृष्टि से सुपर सेंसिटिव गांवों में जाना हुआ. साथ के मित्रों के भय और आशंका के बीच, देर शाम तक घूमना हुआ. सूनी सड़कों पर मरघट की खामोशी के बीच. तब तक लिखा यह अनुभव भी छपा नहीं. पाठक पढ़ते समय ध्यान रखें यह फ़रवरी 2008 में लिखी गयी रपट है. कभी डालटनगंज-चतरा के इन इलाकों में खूब घूमना हुआ. समाजवादी चिंतक, अब बौद्ध अध्येता व...
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