मई की एक तपती हुई दोपहर को मैं नई दिल्ली में योजना आयोग भवन के सामने एक विचित्र विरोध प्रदर्शन में सम्मिलित हुआ था। प्रदर्शनकारी तख्तियां लहरा रहे थे, जोशोखरोश से नारे लगा रहे थे, लेकिन साथ ही वे देश की शीर्ष योजना निर्मात्री संस्था के सदस्यों के लिए कुछ ‘भेंट’ भी लेकर आए थे। उनकी भेंट ठुकरा दी गईं और प्रदर्शनकारियों की भीड़ को पुलिस ने मामूली झड़प के बाद...
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नियति है मौत!- (रिपोर्ट निराला, तहलका)
बिहार के मुजफ्फरपुर और उसके आसपास के दो-तीन जिलों के कुछ ग्रामीण क्षेत्रों में इस बार फिर जून का महीना जानलेवा साबित हुआ. रहस्यमयी बीमारी की चपेट में आकर 60 से अधिक बच्चे काल के गाल में समा गए. इस बीमारी और बीमारी के बहाने प्रभावित इलाके के साथ स्वास्थ्य महकमे की पड़ताल करती निराला की रिपोर्ट आंखों देखी-कानों सुनी दोपहर करीब साढ़े तीन बजे का समय. मुजफ्फरपुर शहर का केजरीवाल मातृ...
More »क्या हो विकास की सही परिभाषा- भारत डोगरा
सामान्य रूप से बाहरी चमक-दमक को देखकर कह दिया जाता है कि यह क्षेत्र विकास कर रहा है। मान लीजिए किसी महानगर में बहुत सी झुग्गी-झोपडि़यों बनी हैं और महानगर में कार्य करने वाले गरीब मजदूरों को इन सस्ते आवासों में आश्रय मिला हुआ है, क्योंकि इससे महंगी जगह में रहने के लिए पैसा उनके पास नहीं है। एक दिन उनकी झोपडि़यां तोड़ दी जाती हैं। इस स्थान पर एक...
More »राशन पर सरकारी डाका -- प्रशांत कुमार दुबे
सरकार अब राशन में खाद्यान्न की जगह नकद भुगतान करने जा रही है. इसका पायलट फेज दिल्ली की दो बस्तियों में प्रारंभ भी कर दिया गया है. सरकार के इस कदम के बाद यह कहना गलत नहीं होगा कि सरकार अपनी संवैधानिक प्रतिबद्धता को भी समाप्त करने की कोशिश कर रही है. हालांकि सार्वजनिक वितरण प्रणाली को कमजोर करने की साजिश तो वर्ष 1991 के बाद से ही शुरु हो...
More »बीड़ी पत्ते में धुआं-धुआं ज़िंदगी -- सारदा लहांगीर
“छो...छोको भूंजी लोक पतर तुड़ले लागसी भोक....” ( हम लोग गरीब भुंजिया आदिवासी, पत्ता तोड़ते हुए भूख लगती है ) नुआपाडा जिले के सीनापाली गांव में रहने वाली 55 वर्षीय पहनी मांझी को जंगल में तेदूपत्ता तोड़ते हुए जब भूख लगती है तो वो अपना ध्यान बंटाने के लिए यहीं उड़ीया लोकगीत गुनगुनाती हैं. तेंदूपत्ता अप्रैल और मई महीने की चिलचिलाती धूप में जब हम अपने वातानुकुलित कमरे में बैठे आराम फरमा...
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