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जजों की नियुक्ति का जटिल सवाल - प्रो. मक्खनलाल

हाल में सुप्रीम कोर्ट में दो जजों की नियुक्ति के बाद कोलेजियम व्यवस्था एक बार फिर सवालों से दो-चार है। इस व्यवस्था पर विचार करने से पहले यह जानना जरूरी है कि आपातकाल के दौरान इंदिरा गांधी ने ऐसा क्या कुछ किया कि मौका मिलने पर न्यायाधीशों ने अदालती निर्णयों के माध्यम से सरकार से काफी कुछ न केवल छीन लिया, बल्कि जजों की नियुक्ति के मामले में शासन और...

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जेलों में बंद तीन में से एक विचाराधीन कैदी या तो एससी हैं या एसटी: रिपोर्ट

नई दिल्ली: भारत की जेलों में अनुसूचित जातियों (एससी) और अनुसूचित जनजातियों (एसटी) की संख्या उनकी जनसंख्या के मुकाबले काफी ज्यादा है. एक नए अध्ययन में इसका खुलासा हुआ है. भारत की आबादी में एससी और एसटी समुदाय के लोगों की संख्या 24 फीसदी है लेकिन जेलों में 34 फीसदी से ज्यादा बंदी एससी और एसटी समुदाय के हैं. इस पर ‘क्रिमिनल जस्टिस इन द शैडो ऑफ कास्ट' के नाम से एक...

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लोकपाल पर सर्च कमेटी फरवरी अंत तक नाम की सिफारिश करे: सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने लोकपाल पर सर्च कमेटी के लिए देश के पहले लोकपाल की नियुक्ति की खातिर नामों के पैनल की अनुशंसा करने की समय सीमा फरवरी के अंत तक निर्धारित की है. सर्च कमेटी के प्रमुख सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश (सेवानिवृत्त) रंजन प्रकाश देसाई हैं. केंद्र की तरफ से पेश हुए अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने पीठ से कहा कि आधारभूत ढांचे की कमी और श्रम बल...

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भीमा-कोरेगांव: सामाजिक कार्यकर्ता आनंद तेलतुम्बड़े के ख़िलाफ़ एफआईआर रद्द करने से इनकार

नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने एल्गार परिषद/भीमा-कोरेगांव हिंसा में कथित भूमिका और माओवादियों से कथित संबंधों के मामले में सामाजिक कार्यकर्ता आनंद तेलतुम्बड़े के खिलाफ दर्ज पुणे पुलिस की प्राथमिकी (एफआईआर) रद्द करने से सोमवार को इनकार कर दिया. न्यायालय ने मामले में जारी जांच में हस्तक्षेप करने से भी इनकार कर दिया. चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एसके कौल ने बॉम्बे हाईकोर्ट द्वारा तेलतुम्बड़े को दी गई...

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आजाद मीडिया के पक्ष में तर्क-- मृणाल पांडे

देश के हर चौराहे, चायखाने, पान की दुकान और शिक्षा परिसर में आजकल भारतीय लोकतंत्र के भविष्य पर चिंता जतायी जा रही है, नाना अटकलें लगायी जा रही हैं. और इन अटकलों का स्रोत मीडिया है, पारंपरिक या सोशल मीडिया. आजादी के सत्तर वर्षों बाद देश जनता को जागृत करनेवाली ताकत के रूप में मीडिया को पहचान रहा है, जिसके विमोचन के लिए गांधी जी ने ‘नवजीवन' नामक साप्ताहिक...

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