चंपारण सत्याग्रह में औरतें पहली बार हिंदुस्तान की जमीनी राजनीति से जुड़ीं और यह औरतों की भागीदारी का बुनियाद बन गया. सूत कातना और खादी बुनना गरीब से गरीब महिला भी अपने घर में कर सकती थी. लाखों वॉलंटियरों, विशेषकर महिलाओं को, जो अपना घर नहीं छोड़ सकतीं थीं और पढ़ी-लिखी भी नहीं थी, अब आंदोलन भाग ले सकती थीं. इन कार्यों ने सबको बदला-शक्तिशाली और कमजोर को, मर्द को...
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खानपान थोपने की बेजा कोशिशें - मृणाल पांडे
पिछले कुछ समय से भारतीय खानपान के लोकतंत्र में मांसाहार के खिलाफ शाकाहार के स्वयंभू रक्षकों ने एक अजीब सा धावा बोल रखा है। भारतीय परंपरा की शुचिता बनाए रखने की अपील करते हुए वे देश के सभी लोगों को जबरन मांसाहार से शाकाहार की तरफ हांक रहे हैं। संभव है कि उनको किसी हद तक शाकाहारी धड़े के मन की बनावट की कुछ जानकारी हो, किंतु वे इस महत्वपूर्ण...
More »कर्ज माफी अंतिम उपाय नहीं-- आर. सुकुमार
देश के कई हिस्से इन दिनों कृषि संकट से गुजर रहे हैं।काफी हद तक इसकी वजह खराब मानसून है। ज्यादातर इलाकों में किसान आज भी सालाना बारिश पर निर्भर हैं, लेकिन कम बारिश के चलते साल 2014 और 2015 उनके लिए अच्छे नहीं रहे, हालांकि 2016 में अच्छी बारिश हुई थी। इस संकट की एक वजह कमोडिटी साइकिल (उत्पादों का चक्र) भी है, जिसके कारण खाद्य उत्पादों की वैश्विक कीमतें चक्रानुक्रम...
More »प्रेम से खौफ़ज़दा समाज - मृणाल पाण्डे
एंटी रोमियो अभियान के नाम पर की जा रही रही युवा जोडों की पकड धकड या पिटाई पर काँपने या झींकने से काम नहीं चलेगा| अगर भारतीय युवा पीढी को अपनी इच्छा से घर बाहर मिलने जुलने और निजी परिचय द्वारा बनी दुतरफा संतुष्टि को विवाह की अकाट्य पूर्व शर्त बनाना है, तो जान लें कि यह घर से सडक तक कई मोर्चों पर चलने जा रही एक लंबी लडाई...
More »आधार से सार्वजनिक हो सकती है आपकी निजी जानकारी-- ज्यां द्रेज
कैसा लगेगा आपको एक ऐसे देश में रहते हुए जहां हर व्यक्ति की पहचान ज़ाहिर करने वाली सूचनाएं (नाम, पता, जन्म-तिथि, फोटोग्राफ- जो भी सरकार चाहे) एक ऐसे डेटा-बेस में इकट्ठे रख दी गई हो कि उसे कोई भी देख सके? इस बात पर ज़रा ग़ौर से सोचिए क्यों भारत में यह स्थिति लगभग आन पहुंची है. ऐसे डेटाबेस में रखी सूचनाओं पर हल्का-फुल्का अंकुश लागू है और इस तक...
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