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हमारे लोकतंत्र का शीत सत्र-- मोहन गुरुस्वामी

संसद का अत्यंत विलंबित शीत सत्र शुरू हो चुका है. इसमें मची चीख-पुकार के सिवाय, मेरी समझ से यह समाप्तप्राय है. ऐसे बहुत-से मुद्दे हैं, जिन पर चर्चा होनी ही चाहिए थी, मगर वह नहीं होगी जैसे, राफेल, प्रस्तावित वित्तीय संकल्प और जमा बीमा (एफआरडीआई) बिल, जीएसटी का क्रियान्वयन, नोटबंदी की सामाजिक एवं आर्थिक कीमतें, ग्रामीण संकट, आदिवासी अशांति, नेपाल की घटनाएं, मालदीव के साथ चीन का मुक्त व्यापार करार....

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प्रधानमंत्री का कहा और सत्य-- कुमार प्रशांत

स्वतंत्रता दिवस के दिन लाल किले के अायोजन से जुड़े एक बड़े अधिकारी ने कार्यक्रम की समाप्ति के बाद राहत की गहरी सांस ली थी अौर मुझसे जो कहा, उसका मतलब इतना ही था कि चलो, अपना काम पूरा हुअा; अब किसने क्या अौर कैसा कहा, यह सब अाप लोग जानते-छानते रहो. हम सबने मिल कर देश को एक ऐसे मुकाम पर पहुंचा दिया है, जहां सार्वजनिक कुछ भी...

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आधार के तर्कों का किंतु-परंतु--- आर. सुकुमार

ऐसे समय में, जब आधार से संबद्ध तीन मामले उस संविधान पीठ के समक्ष सुनवाई के लिए विचाराधीन हैं, जिसका अभी तक गठन ही नहीं हुआ, तब यह लाजिमी है कि हम आधार से जुड़े कुछ मूलभूत सवालों पर विचार करें। इस बात से इनकार करने का कोई आधार नहीं है कि इससे जुड़ी, खासतौर से निजता और सुरक्षा के बिंदु अहम हैं। कहने का आशय यह कि जरूरत...

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घोर विपदा की तरफ बढ़ता कश्मीर-- पी चिदंबरम

जम्मू एवं कश्मीर की स्थिति पर मैंने कई बार लिखा है, खासकर कश्मीर घाटी की स्थिति के संदर्भ के साथ। अप्रैल से सितंबर 2016 के दरम्यान, प्रस्तुत पेज पर, इस विषय पर छह स्तंभ आए। मेरा मुख्य तर्क यह था कि जम्मू-कश्मीर में पीडीपी-भाजपा सरकार और केंद्र सरकार ने जो नीतियां अख्तियार की हुई हैं उनके चलते हम कश्मीर को खो रहे हैं। कश्मीर घाटी के बाहर, कुछ ही लोगों...

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स्वतंत्रता पर हमला है आधार-- अंकिता अग्रवाल

साल 2009 में जब आधार की शुरुआत हुई थी, तो जनता को बताया गया था कि यह भारत के निवासियों को एक पहचान देने की पहल है. यह भी कहा गया था कि आधार बिलकुल स्वैच्छिक है. प्रचार-प्रसार ऐसा हुआ कि लोगों को लगने लगा कि आधार संख्या पाकर वे कई सुविधाओं के पात्र बन जायेंगे. लेकिन, पिछले आठ वर्षों ने इन दावों के खोखलेपन को उजागर कर दिया है. एक...

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