-द वायर, उत्तर प्रदेश में आजमगढ़ शहर के वरिष्ठ फोटो जर्नलिस्ट सुनील कुमार दत्ता का कार्यालय जिला प्रशासन ने 24 मार्च की शाम को ढहा दिया. प्रशासन का कहना था कि यह कार्यालय सड़क की जमीन पर अवैध अतिक्रमण था, इसकी वजह से जाम की समस्या हो रही थी, जबकि इस जमीन को दो दशक पहले नगर पालिका परिषद ने दत्ता को आवंटित कर उनसे किराया ले रही थी. एसडीएम सदर गौरव कुमार...
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अच्छी हो या बुरी लेकिन बिटक्वाइन, ब्लॉकचेन और डिजिटाइजेशन के साथ एक अलग तरह की दुनिया उभर रही है
-द प्रिंट, कल्पना कीजिए कि खनन (पता नहीं किस चीज के) और ब्लॉकचेन टेक्नोलॉजी (इसे भी समझना होगा) से जुड़ी आपकी मुद्रा ‘क्रिप्टो’ यानी गुप्त हो गई. अगर यह सब आपको नहीं समझ में आ रहा है या आप यह भी नहीं समझ पा रहे हैं कि टेस्ला अरबों बिटक्वाइन क्यों खरीद रही है या यह नहीं समझ पा रहे हैं कि चीन यह क्यों सोच रहा है कि उसका ई-यूवान...
More »भारत की जेलों में महिला क़ैदियों की ज़िंदगी केवल शोक के लिए अभिशप्त है…
-द वायर, सिर्फ एक पंखे और एक बल्ब की जरूरत वाले एक छोटे से कमरे में 45 औरतों को रखने के लिए प्रेसिडेंसी सुधार गृह (करेक्शनल होम) के अधिकारियों ने एक तरकीब निकाली: औरतों की शरीर का नाप लेकर उन्हें उनके आकार के ठीक बराबर की सोने की जगह आवंटित करने की. यह वाकया अपराजिता बोस ने सुनाया. जेलों में समय बिताने वाले लोगों के साथ ज्यादातार चर्चाओं जो एक शिकायत आमतौर...
More »कोरोना महामारी ने मनरेगा के सामाजिक ऑडिट सिस्टम को प्रभावित किया है!
जब महात्मा गांधी ग्रामीण रोजगार गारंटी कार्यक्रम (MGNREGA) - एक मांग-संचालित कार्यक्रम पर सार्वजनिक धन का एक बड़ा हिस्सा खर्च किया जाता है, तो वित्तीय गड़बड़ी और कुप्रबंधन की संभावना होती है. शुक्र है कि ग्रामीण रोजगार गारंटी कानून में इस तरह की गड़बड़ियों को रोकने के लिए चेक और बैलेंस मौजूद हैं. यह ध्यान देने योग्य है कि महात्मा गांधी ग्रामीण रोजगार गारंटी कार्यक्रम (MGNREGA) के तहत 2020-21 के लिए...
More »‘देश ख़तरे में है’ का हौवा स्वतंत्र विचारधारा वालों को प्रताड़ित करने का बहाना है
-द वायर, देश में आजकल हर चीज़ खतरे में दिखती है. चाहे धर्म हो, संस्कृति हो, सांप्रदायिक सद्भाव हो या समाज में शान्ति हो, सब बात-बात पर खतरे में बताए जाते हैं. हमारी स्त्रियां तक खतरे में बताई जाती हैं कि विधर्मी उन्हें बहला-फुसलाकर शादी करके धर्म परिवर्तन करा देते हैं. कितनी बार तो हमारा भूतकाल, जो बदल नहीं सकता, वो भी खतरे में बताया जाता है क्योंकि बहुसंख्यकवादी लोग ये आरोप लगाते...
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