अनेक विद्वानों का मानना है कि महात्मा गांधी को समझना आसान भी है और मुश्किल भी. दरअसल, गांधी की बातें सरल और सहज लगती हैं, लेकिन उनका अनुसरण करना बेहद कठिन होता है. हम सभी जानते हैं कि महात्मा गांधी भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के एक प्रमुख नेता थे. वह एक सफल लेखक भी थे. आप उनकी सक्रियता का अंदाजा इस बात से लगा सकते हैं कि 2 अक्तूबर, 1869 में...
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प्लास्टिक कचरे से मुक्ति कब-- ज्ञानेन्द्र रावत
प्लास्टिक कचरे का सवाल अकेले हमारे देश के लिए ही नहीं, वरन् समूचे विश्व के लिए अहम् है. वह बात दीगर है कि यह समस्या हमारे यहां ज्यादा गंभीर है. स्वच्छता अभियान के बावजूद प्लास्टिक युक्त कचरे ने गांव, कस्बा, नगर, महानगर यहां तक देश की राजधानी तक को चपेट में ले लिया है. सागर और महासागर भी नहीं बच सके हैं. प्लास्टिक कचरा जानवरों के लिए तो काल बन...
More »ओडीएफ घोषित पंचायतों का हाल : अब भी 25% लोग कर रहे खुले में शौच
पटना : पटना जिले की आबादी 2011 की जनसंख्या के मुताबिक 58 लाख 38 हजार 465 है, जिनमें से अाधी से अधिक आबादी अब भी खुले में शौच जाने को मजबूर है. कई लोगों के पास जमीन नहीं है, तो कई लोग आर्थिक रूप से शौचालय निर्माण करने में सक्षम नहीं हैं. सरकारी योजनाओं में शौचालय निर्माण की बात जोर-शोर से की जा रही है, लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और...
More »मैं निर्मल ग्राम हूं, खुले में शौच ‘मेरी परंपरा’
अनदेखी . कैथ गांव को 2010-11 में राष्ट्रपति भी कर चुके हैं सम्मािनत नीमाचांदपुरा : मैं निर्मल ग्राम कैथ हूं, मुझे निर्मल ग्राम का सौभाग्य प्राप्त है. स्वच्छ व निर्मल ग्राम के उपलक्ष्य में वर्ष 2010-11 में राष्ट्रपति भी सम्मानित कर चुके हैं, लेकिन, मैं इस सम्मान से खुश नहीं हूं, बल्कि अपने आपको शर्मिंदा महसूस कर रहा हूं, क्योंकि मैं निर्मल ग्राम की पात्रता पूरी नहीं कर पा रहा हूं. दर्द...
More »नदी पुनर्जीवन ही विकल्प-- सुरेश उपाध्याय
माना जाता है कि सभ्यताओं का विकास नदियों के किनारों पर ही हुआ है। लेकिन हम जिस दौर में जी रहे हैं और विकास की जिस अंधाधुंध दौड़ में शामिल हो गए हैं, उसने सबसे पहला हमला हमारी नदियों पर ही किया है। एक ओर नदियों को प्रदूषित किया जा रहा है तो दूसरी ओर कई नदियां विलुप्ति के कगार पर हैं या विलुप्त हो चुकी हैं। नदियों के शुद्धीकरण...
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