सिलीगुड़ी [पवन शुक्ल]। बंगाल में गरीबी का लाभ उठाकर मानव तस्कर वहां अपनी पैठ बना चुके हैं। दूरदराज के गांवों की गरीबी और चाय बागानों की बंदी ने यहां के बच्चों के बचपन पर ग्रहण लगा दिया है। पापी पेट के लिए रोजगार की तलाश में भटक रहे बच्चों को खुद ही नहीं पता है कि वह कहां जा रहे हैं और यह भी नहीं जानते घर वापस आने की संभावना...
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चाय बागान मजदूरों को मिले भोजन का अधिकार
दार्जिलिंग पार्वत्य क्षेत्र, तराई व डुवार्स के चाय बागानों के मजदूरों की दयनीय दुर्दशा के मुद्दे पर सरकार का ध्यान आकृष्ट कराने को 20 संगठन व संस्थाएं आगे आई हैं। इन संगठनों की ओर से संयुक्त रूप से 'नॉर्थ बंगाल राईट टू फूड कैंपेन' यानी 'उत्तर बंगाल भोजन का अधिकार अभियान' का बिगुल फूंका गया है। इसके तहत रविवार को एक इन संगठनों की ओर से हजारों चाय बागान मजदूरों को लेकर...
More »असम के चाय-बागान में भुखमरी से मौत
इतिहासकार बताते हैं कि अंग्रेजीराज के समय देश के पूर्वोत्तर के चाय-बागानों में काम करने वाले मजदूर बड़ी दीन-दशा में थे, तकरीबन बंधुआ मजदूर की दशा में। आजादी के बाद, इनकी दशा कुछ सुधरी। गुजरे कुछ दशकों में देश के चाय-उद्योग ने उन सालों में भी मुनाफा कमाया जिन सालों को आर्थिक-प्रगति के लिहाज से बेहतर नहीं माना जाता। ठीक इसी कारण, असम के चाय-बागानों से आने वाली भुखमरी की...
More »हाले-सितम बयान किए और रो पड़े
सिलीगुड़ी [कार्यालय संवाददाता]। बात उन बच्चों की है, जो चाय बागानों से प्रधान नगर स्थित स्कूलों में लाए जा रहे। कई किलोमीटर का सफर और सवारी ट्रैक्टर से लगी डिब्बानुमा जालीदार ट्राली। यानि कि 'जेलगाड़ी'। इस आलम में मासूम बिलबिला रहे। ट्राली के भीतर न बैठने के लिए सीट है, न पकड़ने के लिए हत्था। एक-दूसरे से धक्के खाते बच्चे भीतर गिरते-पड़ते स्कूल पहुंचते हैं। तब तक उनकी हालत मरियल हो चुकी होती है। जाली...
More »पत्थरों की खदानों से लौटा बचपन || बिदिसा फौजदार/शिरीष खरे ||
कभी बाल मजदूरी करने वाला महेन्द्र अब बच्चों के अधिकारों से जुड़ी कई लड़ाईयों का नायक है। महेन्द्र के कामों से जाहिर होता है कि छोटी सी उम्र में मिला एक छोटा सा मौका भी किसी बच्चे की जिंदगी को किस हद तक बदल सकता है। महेन्द्र रजक, इलाहाबाद जिले के गीन्ज गांव से है- जहां की भंयकर गरीबी अक्सर ऐसे बच्चों को पत्थरों की खदानों की तरफ धकेलती है। महेन्द्र...
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