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भेड़, बकरी और ऊंटनी के दूध से बने चीज़ में बढ़ रही दिलचस्पी, बड़ा हो रहा बाजार

मोंगाबे हिंदी, 30 जनवरी भारत में चीज़ का बाजार लगातार बढ़ता जा रहा है। मार्केट रिसर्च एजेंसी IMARC के अनुसार, साल 2022 में यह 7.13 अरब रुपए का था। माना जा रहा है कि 2028 तक यह 24.06 फीसदी की दर से बढ़कर 26.26 अरब डॉलर पर पहुंच जाएगा। राजस्थान में ऊंटनी के दूध से चीज़ बनाने वाली बहुला नेचुरल्स की संस्थापक आकृति श्रीवास्तव के अनुसार, पारंपरिक चीज़ का सीएजीआर (चक्रवृद्धि...

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गुजरात के दुर्लभ जंगली गधों के संरक्षण के लिये आगे आए कच्छ में नमक बनाने वाले अगरिया

मोंगाबे हिंदी, 30 जनवरी नमक के मैदानों में डेरा डालने के लिए तेजल मकवाना अपना सामान पैक कर रही हैं। दशहरा के त्यौहार के बाद वह और उनके पति दानाभाई मकवाना किराए पर एक ट्रैक्टर लेंगे और इसमें प्लास्टिक की पानी वाली टंकियों में 20 दिन का पानी, सोलर पैनल, एक पंप, एक डीजल जनरेटर, नमक बनाने के औजार, खाने-पीने की चीजें और किचन के जरूरी सामान लादकर ले जाएंगे। इतने...

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असमः तेल कुएं में विस्फोट के तीन साल बाद पुराने रूप में लौट रही मगुरी मोटापुंग बील

मोंगाबे हिंदी, 24 जनवरी  असम में 27 मई,  2020 को आर्द्रभूमि मगुरी मोटापुंग बील के पास बागजान में ऑयल इंडिया लिमिटेड के मालिकाना हक वाले तेल क्षेत्र में गैस रिसाव हुआ। इस वजह से 9 जून, 2020 को विस्फोट हुआ। इसे बुझाने में 173 से ज्यादा दिन लगे। विस्फोट से क्षेत्र में प्राकृतिक चीजों को गंभीर नुकसान हुआ। इस विस्फोट के तीन साल बाद  पारिस्थितिकी तंत्र के पुराने रूप में बहाल होने...

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हमें रोजमर्रा की जिंदगी के लिए मौसम पूर्वानुमान को मुख्यधारा में लाना चाहिए: आईएमडी प्रमुख

इंडियास्पेंड, 24 जनवरी वर्ष 2023 प‍िछले 100,000 की अपेक्षा सबसे गर्म वर्ष रहा। पृथ्‍वी के लगभग सभी महाद्वीप पर गर्मी के रिकॉर्ड टूट गए। सेंटर फॉर साइंस के एक र‍िपोर्ट के अनुसार भारत ने 2023 के पहले नौ महीनों में 273 से 235 दिन (86% से थोड़ा अधिक) में अत‍िव‍िषम मौसम रहा। गर्मी और ठंडी लहरों, चक्रवात और बिजली से लेकर भारी बारिश, बाढ़ और भूस्खलन तक, पर्यावरण के साथ हर...

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समुद्री मलबे के जरिए दक्षिण-पूर्वी तट पर पहुंच रही विदेशी आक्रामक प्रजातियां

मोंगाबे हिंदी, 22 जनवरी समुद्री जीव प्लास्टिक, रबर, कांच, फोम स्पंज, धातु और लकड़ी के मलबे पर सवार होकर दक्षिण पूर्वी भारत के तटों तक पहुंच रहे हैं। इसकी वजह से स्थानीय जैव विविधता संरक्षण को लेकर चिंताएं बढ़ गईं है। एक अध्ययन ने इस बात का खुलासा किया है। ‘सत्यबामा इंस्टिट्यूट ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी, चेन्नई’ के सेंटर फॉर एक्वाकल्चर से जुड़े गुनाशेखरन कन्नन और टीम की रिपोर्ट बताती है कि...

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