संसार की सच्चाइयों के परे, क्या कहीं प्रचार-प्रसार की कोई सीमा भी है? क्या सभी चीजें उनकी वास्तविकताओं में नहीं, वरन उनकी प्रस्तुति में ही परखी जा सकती हैं? क्या सत्य स्व-विज्ञापन के वाष्प से सृजित एक मरीचिका मात्र है? या कि यदि विज्ञापन अपने दावे के अतिरेक की वजह से वास्तविकता से बहुत विलग हो जाये, तो वह स्व-विनाशक भी हो उठता है? हमारी वर्तमान सरकार प्रचार की जिस...
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मोदी सरकार के तीन साल-- योगेन्द्र यादव
नरेंद्र मोदी सरकार के तीन साल के तीन बुनियादी सच हैं. इनमें से किसी भी सच से मुंह चुराना यानी आज हमारे देश की राजनीति से मुंह चुराना है. पहला सच है: नरेंद्र मोदी आज पूरे देश में लोकप्रिय प्रधानमंत्री हैं. दूसरा सच है: नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता उनके कामों और उपलब्धियों के कारण नहीं है, बल्कि उनकी छवि पर आधारित है. तीसरा सच है: मोदी की छवि कुछ तो...
More »‘आप’ को फिर जन-आंदोलन बनना होगा-- राजदीप सरदेसाई
जिस दिन टीवी पर दिल्ली नगर निगम चुनाव को लेकर एग्ज़िट पोल के नतीजों में भाजपा की एकतरफा जीत का अनुमान व्यक्त किया जा रहा था, आम आदमी पार्टी के प्रवक्ता विद्रोही तेवरों में आसन्न हार के लिए ईवीएम को दोष दे रहे थे। मैंने पूछा कि आप एग्ज़िट पोल पर ईवीएम से छेड़छाड़ का आरोप कैसे लगा सकते हैं, क्योंकि वह तो मतदाताओं के सैंपल के आधार पर होता...
More »तीन सरकार, तीनों बेकार!-- योगेन्द्र यादव
हमारे देश में महानगरों की हालत इतनी बुरी क्यों है, यह समझना है तो दिल्ली आइए. लोकतांत्रिक चुनाव इसे बदलने में क्यों असफल रहते हैं, यह जानने के लिए दिल्ली नगर निगम के चुनाव को देखते रहिए. हमारे शहरों-महानगरों में सरकार एक भूल-भुलैया है. सरकारी बाबू के सिवा किसी को नहीं पता कि किसका क्या अधिकार क्षेत्र है. दिल्ली शहर में तीन सरकारों का राज चलता है- उपराज्यपाल...
More »असहमति के अस्वीकार का दौर-- पवन के वर्मा
यह तो मैं समझ सकता हूं कि अपने देश में कुछ लोग उमर खालिद से इत्तिफाक नहीं रखते. मैं यह स्वीकार करने को भी तैयार हूं कि कुछ लोगों के अनुसार उसके विचार राष्ट्रविरोधी हैं. लेकिन, जो कुछ मैं नहीं समझ सकता, वह यह कि चूंकि ये लोग उससे सहमत नहीं हैं, इसलिए वे उसे बोलने नहीं देंगे. और मुझे यह भी मंजूर नहीं कि देशभक्त होने की परिभाषा राष्ट्रीयता...
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