रांची जिले के बुढ़मू में मनरेगा की एक योजना के तहत कुआं निर्माण का कार्य करती युवतियां इस बात का प्रमाण हैं कि 21वीं सदी में गांव को ऐसे कानून व कार्यक्रम मिले हैं, जिनसे उनका पलायन रुके व उन्हें घर पर ही रोजी-रोटी मिले. इस तरह के और भी कई कार्यक्रम व कानून हैं, जिससे गांवों की सूरत पिछली सदी की तुलना में काफी बदल गयी है. हालांकि इनके...
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कालाहांडी में बार-बार चढ़ती काठ की हांडी- सलमान रावी
शहर कैसा होता है? इन्हें नहीं पता। बस कैसी होती है? ये नहीं जानतीं। "शायद शहर में मेम रहती है। मुझे पता नहीं। शहर बहुत बड़ा होगा। वहां बिजली होगी। जगमग-जगमग करता होगा। वहां मेले लगते होंगे। शहर की लड़कियां बहुत ख़ूबसूरत होंगी लेकिन मैंने उन्हें कभी नहीं देखा।" ये कल्पना है, कालाहांडी के पेर्गुनी पाड़ा गाँव में रहने वाली ललिता की, जिसने कभी शहर नहीं देखा है। ललिता के सपनों...
More »गांव मात्र वोटों से ज्यादा कुछ नहीं है- अनिल जोशी
जिस देश का अस्तित्व उसके गांवों से हो, वही नकारे जाएं, तो इससे बड़ी विडंबना कुछ नहीं हो सकती। देश में 8,800 शहर और 22,000 कस्बों की तुलना में साढ़े छह लाख गांव संख्या में कहीं ज्यादा हैं। देश की करीब 70 प्रतिशत आबादी आज भी गांवों में बसती है, और यह बड़ी संख्या ही इस देश की राजनीतिक दिशा तय करती है। राज्यों के मुख्यमंत्री व देश के प्रधानमंत्री इन्हीं...
More »जंगल के असल दावेदार- विनय सुल्तान
जनसत्ता 19 मार्च, 2014 : पिछले साल की दो घटनाएं इस देश में जल, जंगल और जमीन की तमाम लड़ाइयों पर लंबा और गहरा असर छोड़ेंगी। पहली घटना दिल्ली से दो हजार किलोमीटर की दूरी पर स्थित नियमगिरि की है। यहां ग्रामसभाओं ने एक सुर में अपनी जमीन ‘वेदांता’ के हवाले करने से इनकार कर दिया। इसके बाद वेदांता कंपनी को नियमगिरि छोड़ना पड़ा। नियमगिरि जल, जंगल और जमीन की...
More »सिर्फ लुभावनी बातों से नहीं- हरवीर सिंह
देश की दोनों बड़ी राजनीतिक पार्टियों, भाजपा और कांग्रेस, का मानना है कि आम आदमी के जीवन को बेहतर करने और गरीबी उन्मूलन का एक ही मंत्र है, वह है-ऊंची विकास दर। लेकिन इस समय आर्थिक विकास दर दशक के सबसे कमजोर दौर से गुजर रही है। मौजूदा वित्त वर्ष की तीसरी तिमाही के लिए विगत शुक्रवार को आए केद्रीय सांख्यिकी संगठन (सीएसओ) के ताजा आंकड़ों के मुताबिक, लगातार सातवीं...
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