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एक सार्वजनिक बुद्धिजीवी की दास्तान-- रामचंद्र गुहा

एडवर्ड सईद हमारी पीढ़ी के भारतीय बुद्धिजीवियों के नायक रहे हैं। एक युवा वामपंथी के नाते पूर्व पर लिखने वाले पश्चिमी विद्वानों पर उनके हमले हमें ऊर्जा देते थे। तीसरी दुनिया के देशों का समर्थक होने के नाते इजरायली अपराधों की निंदा और फलस्तीनियों के प्रति एकजुटता का उनका पक्ष हमें प्रभावित करता था। मेरे कुछ दोस्त सईद के प्रति आजीवन समर्पित रहे, हालांकि मेरा मोहभंग होने लगा था। सईद...

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'अर्बन नक्सल' कौन है, कहां है-- रविभूषण

'अर्बन नक्सल' एक गढ़ा हुआ राजनीतिक पद है. इसका अर्थ उन शहरी पत्रकारों, कवियों, लेखकों, बुद्धिजीवियों, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और संस्कृतिकर्मियों से है, जो नक्सलवाद, माओवाद के समर्थक हैं. इस पद की वास्तविकता और इसके पीछे सत्ता-व्यवस्था और सरकारों की नीतियों पर इसके साथ कम विचार किया गया है. फिल्म निर्माता विवेक अग्निहोत्री की पुस्तक 'अर्बन नक्सल्स : द मेकिंग ऑफ बुद्धा इन ए ट्रैफिक जाम' (अंग्रेजी में गरुण प्रकाशन से...

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भविष्य के शिक्षक, शिक्षकों का भविष्य-- हरिवंश चतुर्वेदी

आज के दिन देश के लाखों स्थानों पर स्कूलों, कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में शिक्षक दिवस धूमधाम से मनाया जाता है। लेकिन क्या डॉ राधाकृष्णन की कल्पना के अनुरूप आज भी समाज में शिक्षक और शिक्षा के पेशे को हम वह सम्मान दे पाए हैं, जो उन्हें मिलना चाहिए? हम इंजीनियरों, डॉक्टरों, चार्टर्ड अकाउंटेंट, आईएएस, आईपीएस, नेताओं, उद्योगपतियों, साधु-संतों और फिल्मी अभिनेताओं से मिलकर जितना गद्गद् होते हैं और सेल्फी लेने...

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पीएम की बातें और देश के सवाल-- योगेन्द्र यादव

क्या लाल किले और चांदनी चौक में फासला बढ़ रहा है? पंद्रह अगस्त को लाल किले की प्राचीर से प्रधानमंत्री का भाषण सुनते वक्त यह सवाल मेरे जहन में कौंध रहा था. टीवी पर विपक्षी नेता और कई एंकर शिकायत कर रहे थे कि प्रधानमंत्री का भाषण बहुत राजनीतिक है. मुझे इसकी चिंता नहीं थी. स्वतंत्रता दिवस पर प्रधानमंत्री का भाषण राजनीतिक होता है, होना भी चाहिए. यह भाषण...

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पत्रकारिता के शीर्ष कुलदीप नैयर-- नीरजा चौधरी

भारतीय पत्रकारिता के बड़े आधार-स्तंभों में से एक कुलदीप नैयर अब हमारे बीच नहीं रहे. मैं उन्हें भारतीय पत्रकारिता जगत का लिजेंड मानती हूं. मैं उनके काम करने के तरीके और उनकी पत्रकारिता को जितना नजदीक से जानती हूं, कह सकती हूं कि आज तकनीकी के इस दौर में भी कोई पत्रकार वैसा काम नहीं कर सकता. जिस तरीके से वे फैक्ट फाइंडिंग करते थे, उसमें कहीं भी कोई एकपक्षीय...

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