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सत्ता में दलित- श्योराज सिंह बेचैन

Dalits pain मौजूदा राजनीतिक परिदृश्य में जब जातियों के आधार पर राजनीतिक गोलबंदी तेज हो गई है, सही मायने में कांशीराम ही अकेले ऐसे नेता थे जिन्होंने व्यवस्था बदलने के लिए जाति के समाप्त होने का इंतजार नहीं किया था। उन्होंने जातियों, उप-जातियों में सहअस्तित्व और आत्मसम्मान की भावना जगाकर उन्हें सत्ता में हिस्सेदारी की महत्वाकांक्षा के साथ संगठित किया। समकालीन राजनीति में उनके इस योगदान ने न केवल हाशिये पर...

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जल की जमींदारी- राजकुमार सोनी(तहलका)

छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से 40 किलोमीटर दूर दुर्ग जिले के गांव महमरा के बाशिंदे आज भी इस बात को सहजता से स्वीकार नहीं कर पाते कि सदियों से उनकी जीवनरेखा रही शिवनाथ नदी पर अब उनका पहले जैसा अधिकार नहीं रहा. यहां के एक ग्रामीण साधुराम बताते हैं, 'हमें तो अब नदी की तरफ जाने में ही डर लगता है कि कोई कुछ कह न दे.' दरअसल शिवनाथ छत्तीसगढ़ की...

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विकास की बंद गली- भारत डोगरा

जनसत्ता 2 फरवरी, 2012 : हाल के वैश्विक संकट ने विश्व-स्तर पर लोगों को नए सिरे से आर्थिक नीतियों के बारे में सोचने के लिए प्रेरित किया है। अब आम लोग और विशेषज्ञ दोनों निजीकरण, बाजारीकरण और भूमंडलीकरण पर आधारित मॉडल की प्रासंगिकता पर सवाल उठा रहे हैं। आम लोगों की बेचैनी की अभिव्यक्ति सबसे प्रबल रूप में आक्युपाइ द वॉल स्ट्रीट आंदोलन के रूप में हुई है। दूसरी ओर, इस बार...

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खाद्य सुरक्षा की खातिर - सुभाष वर्मा

जनसत्ता 5 जनवरी, 2012: पूरी दुनिया में एक सौ पचीस करोड़ से अधिक लोग भूख से त्रस्त हैं, जिनमें से एक तिहाई लोग भारत के गरीब हैं। नवीनतम वैश्विक भूख सूचकांक में भारत का स्थान बहुत नीचे, इक्यासी देशों के बीच सड़सठवां है। इसलिए यह स्वागत-योग्य है कि भारत सरकार ने खाद्य सुरक्षा की गारंटी देने वाला विधेयक संसद में पेश किया है। इस विधेयक में ग्रामीण इलाकों की पचहत्तर फीसद और...

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लोकपाल के अधीन- सीताराम येचुरी

आज जनता व्यग्रता से इंतजार कर रही है कि संसद एक कारगर लोकपाल संस्था कायम करे, ताकि उच्च पदों पर तथा सार्वजनिक जीवन में व्याप्त भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाया जा सके। इसी संदर्भ में सरकार ने संसदीय स्थायी समिति द्वारा पेश की गई रिपोर्ट पर विचार करने के लिए विगत 14 दिसंबर को एक सर्वदलीय बैठक बुलाई थी। संसदीय स्थायी समिति ने लोकपाल विधेयक के मौजूदा मसौदे और पिछले कुछ...

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