राजनीतिक गहमागहमी में देश जब मतदान-केंद्रों की तरफ बढ़ चला है तो ठोस तथ्यों और तर्कों से होने वाले जांच-परख की एक तरह से विदाई हो रही है. और इन पर हावी हो रहा है जन-संपर्क उद्योग का प्रचार-अभियान. पहला है नरेंद्र मोदी के व्यक्तित्व पर चढाया जा रहा रंग-रोगन ताकि वो लोगों की नजर में चढ़ जाए. अधिनायकवादी चरित्र और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रतिक्रियावादी मूल्यों में अंदर तक धंसे...
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21वीं सदी में गांव की उम्मीद की डोर
रांची जिले के बुढ़मू में मनरेगा की एक योजना के तहत कुआं निर्माण का कार्य करती युवतियां इस बात का प्रमाण हैं कि 21वीं सदी में गांव को ऐसे कानून व कार्यक्रम मिले हैं, जिनसे उनका पलायन रुके व उन्हें घर पर ही रोजी-रोटी मिले. इस तरह के और भी कई कार्यक्रम व कानून हैं, जिससे गांवों की सूरत पिछली सदी की तुलना में काफी बदल गयी है. हालांकि इनके...
More »कालाहांडी में बार-बार चढ़ती काठ की हांडी- सलमान रावी
शहर कैसा होता है? इन्हें नहीं पता। बस कैसी होती है? ये नहीं जानतीं। "शायद शहर में मेम रहती है। मुझे पता नहीं। शहर बहुत बड़ा होगा। वहां बिजली होगी। जगमग-जगमग करता होगा। वहां मेले लगते होंगे। शहर की लड़कियां बहुत ख़ूबसूरत होंगी लेकिन मैंने उन्हें कभी नहीं देखा।" ये कल्पना है, कालाहांडी के पेर्गुनी पाड़ा गाँव में रहने वाली ललिता की, जिसने कभी शहर नहीं देखा है। ललिता के सपनों...
More »योजनाएं नहीं दिलातीं वोट!- पत्रलेखा चटर्जी
कल्याणकारी योजनाएं क्या वोटों में तब्दील हो पाती हैं? राजनीतिक पंडितों की मानें तो ऐसा नहीं होता। इनका मानना है कि अगर घोषित तौर पर निर्धनों को समर्पित ये योजनाएं वास्तव में वोटों को पाने का कामयाब जरिया होतीं, तो 2014 के आम चुनावों से ठीक पहले कल्याणकारी एजेंडा रखने वाली कांग्रेस पार्टी की ऐसी दुर्गत न दिखती। कांग्रेस नेतृत्व वाले यूपीए के खस्ताहाल को बयां करते हर जनमत सर्वेक्षण के साथ...
More »समावेशी विकास का वायदा- जयराम रमेश
कांग्रेस के 2014 के घोषणापत्र के आवरण पर प्रकाशित 'आपकी आवाज-हमारा संकल्प' बखूबी अपना संदेश प्रकट कर देता है। राहुल गांधी के नेतृत्व में पूरे देश में तीस से अधिक सुझावों और 1.3 लाख लोगों के विचारों को शामिल करके तैयार किया गया यह घोषणापत्र लंबे समय से पार्टी के आदर्श रहे न्याय, समता और गरिमा के विचारों पर आधारित है। तेजी से आधुनिक हो रहे देश के लिए यह...
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