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बोलने की आजादी बनाम बड़बोलापन-- रमेश दवे

लोकतंत्र सभ्यता, शील और मर्यादा के उत्कर्ष की सत्ता-प्रणाली है। पर कुछ वर्षों में लोकतंत्र के शील का आसन भाषण की अराजकता से गंदा किया गया है। यह सच है कि भारत के सर्वश्रेष्ठ और विश्व के सबसे बड़े संविधान ने अनेक दायित्व, मर्यादाएं, सीमाएं और अभिव्यक्ति की आजादी का नागरिक और नैतिक अधिकार भी दिया है, लेकिन बोलना अगर बड़बोलापन बन जाए, अभिव्यक्ति अगर विकृति बन जाए और संविधान...

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ईमानदार हो पुलिस-प्रशासन-- जगमती सांगवान

देश में आये दिन जघन्य आपराधिक घटनाएं बढ़ती ही जा रही हैं. हरियाणा में घटी हालिया तीन घटनाएं इसकी सबूत हैं. हरियाणा के जींद में एक दलित लड़की की रेप के बाद बुरी तरह से हत्या कर दी गयी. एक दूसरी खबर है कि पानीपत में हत्या के बाद दलित लड़की की लाश के साथ रेप हुआ. वहीं फरीदाबाद में एक लड़की का पहले अपहरण किया गया, फिर चलती...

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राजनीतिक शक्ति बनें किसान-- राजकुमार सिंह

अगर किसी कृषि प्रधान देश में कृषि और किसान ही संकट में आ जायें तो देश की दशा-दिशा का अंदाजा लगा पाना मुश्किल नहीं होना चाहिए। भारत एक कृषि प्रधान देश है, यह बात दशकों से पाठ्य पुस्तकों में पढ़ायी जाती रही है, क्योंकि लगभग 80 प्रतिशत तक आबादी जीवनयापन के लिए कृषि और उससे जुड़े काम-धंधों पर निर्भर रही है। इसलिए ग्रामीण भारत को ही असली भारत भी कहा...

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आधार निराधार--- तवलीन सिंह

जब भी किसी मुद्दे को लेकर दिल्ली के राजनीतिक गलियारों में हल्ला मचने लगता है, तो मेरी आदत है किसी दूरदराज गांव में जाकर उसी मुद्दे पर आम, गरीब भारतवासियों से बातें करना। सो, पिछले हफ्ते जब आधार कार्ड को लेकर खूब हल्ला मचने लगा देश भर में निजता पर और पत्रकारों और टीवी एंकरों में भी खेमे बंट गए, मैं एक ऐसे गांव में जा पहुंची जहां कुछ भी...

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तनाव के कगार पर असम-- योगेन्द्र यादव

असम बारूद के ढेर पर बैठा है. वहां की पार्टियां इसमें आग सुलगाकर वोट की रोटी सेंक रही हैं. बाकी देश आंख मूंदे बैठा है या सोच रहा है कि जब विस्फोट होगा, तब देखा जायेगा. समस्या पुरानी है, लेकिन संदर्भ नया है. विदेशी अाप्रवासियों का सवाल कई दशकों से असम का नासूर बना रहा है. आजादी के बाद से ही राज्य में देश के भीतर और बाहर दोनों तरफ...

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