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मलियाना नरसंहार के 34 साल: हाशिमपुरा की तरह क्या यहां के पीड़ितों को न्याय मिल पाएगा?

-द वायर, 22-23 मई को मेरठ जिले के मलियाना गांव में हुए नरसंहार और मेरठ दंगों के दौरान जेलों में हिरासत में हुईं हत्याओं की 34वीं बरसी है. उस दिन उत्तर प्रदेश की कुख्यात प्रांतीय सशस्त्र पुलिस बल (पीएसी) द्वारा मेरठ के हाशिमपुरा मोहल्ले से 42 मुस्लिम युवकों उठाकर हत्या कर दी गई थी, जबकि अगले दिन 23 मई को पास के मलियाना गांव में 72 से अधिक मुसलमानों को मार...

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शासकीय नैतिकता का आख़िरी झीना पर्दा भी जाता रहा

-सत्यहिंदी,  जोसेफ स्टोरी की 200 साल पहले कही गयी बात सही साबित हो रही है। पार्टी में आ जाएँ तो सात खून माफ़ लेकिन सरकार के ख़िलाफ़ जाएँगे तो ‘देशद्रोह’। संदेश साफ़ है ‘पाला बदलो या सीबीआई को झेलो और जेल भोगो’। क्या इस सन्देश का तार्किक विस्तार यह नहीं हो सकता कि ‘हमारे ख़िलाफ़ होने का मतलब सीबीआई/ एन्फोर्समेंट डायरेक्टरेट या इनकम टैक्स की चाबुक झेलने को तैयार रहो।  संविधान, क़ानून...

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बिहार के गांवों में कोरोना का कहर: क्या बंद स्वास्थ्य केंद्रों को खोलने से सुधरेंगे हालात?

-डाउन टू अर्थ, कुछ माह पहले बिहार में 1451 ग्रामीण स्वास्थ्य केंद्र बंद कर दिये गये थे, अब उन्हें खोला जा रहा है। मंगलवार, 18 मई को खुद राज्य के अपर मुख्य सचिव प्रत्यय अमृत ने यह घोषणा की है। उन्होंने कहा कि जब राज्य में कोरोना के मामले बढ़ने लगे तो इन 1451 अतिरिक्त प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों को बंद कर इनके चिकित्सकों और अन्य स्वास्थ्य कर्मियों को डेडिकेटेड कोविड हेल्थ...

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कोविड-19 टीका सभी के लिए : भारत में बिगड़ती जा रही टीके के आपूर्ति की कहानी

-डाउन टू अर्थ, भारत ने जब टीकाकरण अभियान के लिए योजना बनाई थी, तब बहुत मामूली लक्ष्य तय किया था। भारत सरकार ने 28 दिसंबर, 2020 को कोविड-19 वैक्सीन के लिए ऑपरेशनल गाइडलाइन  जारी की थी, ताकि बगैर किसी बाधा के टीकाकरण को लागू किया जा सके। हालांकि, किसी समय-सीमा का उल्लेख नहीं किया गया था और जो कुछ कहा गया था, उसमें शामिल था कि जो भी व्यक्ति वैक्सीन के...

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दूसरी लहर ग्रामीण जीवन पर कहर बरपा रही है, क्या यह ग्रामीण आजीविका को भी प्रभावित करेगी?

इस साल मार्च के बाद से हर रोज कोविड-19 के नए मामलों और मौतों में वृद्धि होने के बाद मीडिया ने रिपोर्ट (कृपया यहां और यहां क्लिक करें) किया कि प्रवासी कामगार अपने प्रवास स्थलों से मूल स्थानों (यानी मूल स्थानों) पर वापस लौट रहे हैं. शहरों और बड़े औद्योगिक कस्बों में जहां समाज के हाशिए के वर्गों से अनौपचारिक और कम कुशल श्रमिक मौसमी रूप से प्रवास करते हैं,...

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