आरंभ में मोबाइल फोन को लैंडलाइन फोन के विकसित विकल्प के तौर पर मुहैया कराया गया था. धीरे-धीरे इसमें कई खासियतें जुड़ती चली गयीं. अब स्मार्टफोन का जमाना है, जिसका बहुआयामी उपयोग पढ़ने-लिखने और सीखने के तौर-तरीके को भी बदल रहा है. किस तरह से स्मार्टफोन इन कार्यो को अंजाम देता है, क्या है एम-लर्निग और 4जी तकनीक तथा सोशल नेटवर्किग कैसे शिक्षा के क्षेत्र में बदलाव ला रहा...
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मुंबई की झुग्गी में शिक्षा की अलख जगाते सुपरहीरो अंकल
फिरोज अशरफ ने बीस साल पहले नौकरी छोड़ दी थी। उनके पढ़ाए बच्चे आज झुग्गियों से निकलकर बड़े बैंक अधिकारी और वकील बन गए हैं। 73 वर्षीय फिरोज अशरफ जोगेश्वरी की झुग्गी बस्तियों के बच्चों के लिए सुपरहीरो अंकल से कम नहीं हैं। उम्र के इस पड़ाव पर आकर फिरोज का कहना है कि जब तक हाथ-पांव चल रहे हैं, बच्चों को पढ़ाता रहूंगा। 1997 से अब तक 5000 से ज्यादा...
More »बढ़ते संसाधन घटता ज्ञान - शंकर शरण
जनसत्ता 11 नवंबर, 2014: एक समय था जब देश के जिला केंद्र ही नहीं, अनेक कस्बों में भी भाषा, गणित और विज्ञान के ऐसे शिक्षक होते थे जिनकी स्थानीय ख्याति हुआ करती थी। यह दो पीढ़ी पहले तक की बात है। तब विद्यालयों के पास संसाधन कम थे और शिक्षकों का वेतन भी बहुत कम था। स्कूल के कमरे, मामूली कुर्सी, बेंच, पुस्तक, छात्र और शिक्षक, यही तत्त्व शिक्षा-परिदृश्य बनाते...
More »लावारिस बचपन को बचाने की कोशिश- राजीव चौबे
हमारे देश में कई जगहों पर आज भी बेटियों को उपेक्षित जिंदगी जीनी पड़ती है. कहीं उन्हें जन्म लेने से पहले गर्भ में ही मार डाला जाता है, तो कहीं जन्म लेते ही भगवान भरोसे लावारिस छोड़ दिया जाता है. लेकिन तमिलनाडु सरकार की एक योजना के तहत उपेक्षित कन्या शिशुओं को एक बेहतर जिंदगी मयस्सर करायी जा रही है. राजीव चौबे तमिल नाडु के नामक्कल जिले में स्थित अन्नाई मथाम्मल शीला...
More »जच्चा-बच्चा योजना बनाने सात माह में भी नहीं जुटे अफसर
भोलाराम सिन्हा, रायपुर। छत्तीसगढ़ में आर्थिक दृष्टि से कमजोर गर्भवती महिलाओं की गर्भावस्था के दौरान देखभाल और स्वस्थ शिशु के जन्म के लिए राज्य सरकार सात महीने में भी योजना नहीं बना पाई है। इस संबंध में विभिन्न विभागों की मदद ली जानी है, लेकिन संबंधित विभाग के अफसर योजना का प्रारूप तैयार करने के लिए बुलाई गई बैठकों में दिलचस्पी नहीं हो रहे हैं। अफसर सात महीने में भी...
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