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एक्सक्लुसिव इंटरव्यू: “पढ़ाई पटरी पर लाने के दिशानिर्देश जल्द” -रमेश पोखरियाल निशंक

-आउटलुक,  अचानक आई कोविड महामारी ने स्कूल-कॉलेज से लेकर सरकार तक, किसी को संभलने का मौका नहीं दिया। जिस समय संकट आया, उसी वक्त स्कूलों और कॉलेजों की परीक्षाओं के साथ उच्च शिक्षा संस्थानों की प्रवेश परीक्षाएं होती हैं। सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनौती यह है कि छात्रों की पढ़ाई और साल बर्बाद न हो। छात्रों की परेशानियां दूर करने के लिए केंद्र सरकार क्या कदम उठा रही है, राज्यों...

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बीतते दिनों के साथ लॉकडाउन से धीरे-धीरे बाहर निकलता भारत

-न्यूजक्लिक, 18 मई को कोविड-19 को लेकर पूरे भारत में लागू होने वाले केंद्रीय गृह मंत्रालय द्वारा जारी राष्ट्रीय निर्देश एक निर्धारिक पल को चिह्नित करते हैं। देश ने सफलतापूर्वक एक चुनौतीपूर्ण अवधि से पार पा लिया है। चीनी दार्शनिक कन्फ़्यूशियस ने एक बार कहा था, "कामयाबी पिछली तैयारी पर निर्भर करती है, और इस तरह की तैयारी के बिना नाकाम होना तय होता है।" आख़िरी चरण में प्रवेश कर रहे राष्ट्रव्यापी...

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पंजाब: लॉकडाउन के चलते हुए नुकसान से डेयरी कारोबार को छोड़ना चाहते हैं पशुपालक

-गांव कनेक्शन,  कोरोना वायरस के चलते लागू लॉकडाउन के चलते पंजाब के दुग्ध उत्पादन पर कहर बनकर टूटा है। सूबे में दुग्ध उत्पादन का धंधा, कृषि क्षेत्र की कुल घरेलू पैदावार का एक तिहाई हिस्सा है। ग्रामीण-पंजाब के 34 लाख परिवारों में से कम से कम 60 फ़ीसदी परिवार इस धंधे से सीधे तौर पर जुड़े हुए हैं। इसके अतिरिक्त जम्मू-कश्मीर के लगभग 20 हजार प्रवासी गुर्जर परिवार भी पंजाब में...

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कोविड-19: लॉकडाउन ने बिगाड़ी ग्रामीण भारत की दशा

-डाउन टू अर्थ, एक महीना पहले तक धनीराम साहू को नहीं पता था कि वायरस या सोशल डिस्टेंसिंग किस बला का नाम है। साहू छत्तीसगढ़ के धमतरी जिले के शंकरदह में रहते हैं। वह कहते हैं, “अब हर कोई कोरोनावायरस और इससे खुद को महफूज रखने की बात करता दिख रहा है।” दुनियाभर के तमाम विज्ञानियों और एपिडेमियोलॉजिस्ट की तरह साहू को भी इस वायरस के बारे में बहुत जानकारी नहीं...

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क्यों यह सबसे मुनासिब वक्त है एक राष्ट्रीय सरकार के गठन का

-न्यूजलॉन्ड्री, सरकार बनाने के लिए वर्तमान में बहुमत का क्या मतलब है. पहला कि सत्ताधारी दल को कभी भी कुल आबादी का बहुमत नहीं होता है. चुनाव में कुल मतदान में सबसे ज्यादा मत हासिल करने के कारण उसे बहुमत मान लिया जाता है. संसदीय लोकतंत्र में बहुमत एक विज्ञापन की तरह होता है. वास्तविकता से उसका बहुत दूर का रिश्ता होता है. मसलन 1952 के पहले चुनाव में केवल 17,32,13,635 मतदाता...

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